आधी धरती बन गई, इंसा की जागीर l
धन दौलत तो दिख रही, दिखता नहीं जमीरll
नजरों से नजरें मिली, हुई नजर से बातl
अपनों की नजरें फिरी, हुई दिवस में रातll
कुछ समझाना मित्र को, मत कर ऐसी भूलl
समझाने को है अभी, समय नहीं अनुकूलll
झूठी बातों का नहीं, होता है आधारl
सच्चाई से कीजिए, दुनिया में व्यापारll
घर के टुकड़े हो गए, बिगड़ा आज चरित्र l
बँटवारा माँ-बाप का, कैसे होगा मित्रll
गुस्से से कहना नहीं, अपने मन की बातl
पहुँचाता तो क्रोध है, अपनों को आघातll
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Tuesday 18 September 2018
दोहे "दिखता नहीं जमीर" "( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),
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