चली गंगा चली यमुना बनाने को समुंदर है
भुलाया जो नहीं जाता वही यादों का मंजर है
बनेंगे काम सारे ही, अगर हो हौसला मन में
कोई ना भूलता जिसको वही होता सिकंदर है
जन्म के साथ ही बनती हमेशा भाग्य की रेखा
परोसा है वही जाता बना जैसा मुकद्दर है
चला रोटी कमाने को हुनर को बेचने निकला
उछल और कूद जो करता वही होता कलंदर है
राधा कर रही सजदा हमेशा उस ठिकाने को
जहाँ पर ज्ञान के रहते बड़े भारी धुरंधर हैं
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