जो कहती दिल की हर धड़कन मुझे इतना बताओ भी ।।
उजाला कर रहा दिनकर हमेशा ही जमाने से।
है रातों के अंधेरे में दिया दिल का जलाओ भी।।
क्यों दूरी बढ़ रही हमदम हमारे बीच में अब तो।
आओ पाट कर खाई दिलों में पुल बनाओ भी।।
तुम्हारी बात की हूँ मुंतज़िर (इंतजार) मैं तो हमेशा से ।
अगर चाहो सजा देना मुझे यूँ ही सताओ भी ।।
गर दिल को दुखाया है कभी राधे ने गलती से ।
मगर तुम घाव पर मेरे कभी मरहम लगाओ भी।।
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