Monday 30 April 2018

आदमी राधा तिवारी ' राधेगोपाल '

             आदमी

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हर दम नहीं पास बिठाता है आदमी ।
जी भर गया तो दूर भगाता है आदमी ।।

गले लगाकर गिले-शिकवे तो सब करें।
 क्रोध में मित्र को शत्रु बनाता है आदमी ।।

जीवन और मृत्यु तो है ईश्वर के हाथ में ।
इंसान में मृत्यु का खौफ जगाता है आदमी ।।

हैवान बन कर रात को चलता है दरबदर ।
स्वयं को इंसान नहीं भगवान बताता है आदमी।।

राधे जो इस धरा पर खुद को ढूंढने गई ।
अपने ऐब हर समय छुपाता है आदमी।।

Saturday 28 April 2018

पृथ्वी दिवस राधा तिवारी ' राधेगोपाल '

पृथ्वी दिवस 
धरा दिवस के रूप में, है बाईस अप्रैल ।
जीवन में इस दिवस को, बना न देना खेल ।।

अपने पास पड़ोस में ,करो स्वच्छ परिवेश।
 अपना भी कर्तव्य है ,सरकारी आदेश ।।

जल सूरज की प्रचुरता, रखता भारत देश ।
झीलों नदियों से भरा ,है इसका परिवेश ।।
  
पीने योग्य बनाइए, अब सागर का नीर ।
जल के बिन होते यहां, जंतू सभी अधीर।।

 धरा दिवस पर दीजिए, सब को यह संदेश।
 पेड़ लगाकर धरा पर,बचा लीजिए देश।। 

सूख गई नदियां सभी, सूख गए हैं खेत।
 बंजर अब धरती हुई ,शेष रह गया रेत ।।

हरियाली सब लुप्त है, खेत हुए बर्बाद।
 खेतों में अब डालते ,लोग विदेशी खाद।।

Thursday 26 April 2018

मेरा मन राधा तिवारी' ' राधेगोपाल '


मेरी साँसों के तारों को,
किसने झँकृत कर डाला।
मेरा मन कीट पतंगों सा,
हो गया आज क्यों मतवाला।।

पतवार नहीं कर में मेरे,
नौका को पार करो मेरी।
अब नहीं सूझती राह मुझे,
नौका को लहरों ने घेरी।।

मेरे मन में है चाह यही,
हरदम मेरे दिल में रहना।
यह तो तेरा अपना घर है,
हँसते-हँसते पीड़ा सहना।।

यह कौन कहाँ से आए हैं,
किसने की है जोरा जोरी।
दिल की धड़कन में बस करके,
तुमने मेरी निंदिया चोरी।।

मेरे दो नैनों में आकर,
किसने ज्योति रोशन कर दी।
मेरे तन में बस करके.
इक नई ऊर्जा है भर दी।।

व्याकुल हो जाता है मन जब,
तब अन्धकार छा जाता है ।
खुशियों की मधुर कल्पना में,
सुन्दर मधुबन आ जाता है ।।

Monday 23 April 2018

जोकर राधा तिवारी 'राधेगोपाल '

 जोकर 
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सर्कस में जोकर ने मुखौटा जो पहना
 कहा उसने जग में सबसे हंसते ही रहना 

ना रोना कभी भी आंसू बहा कर
 हँसना सदा ही ठहाके लगाकर

 मगर जब उसने मुखौटा उतारा 
हंसते हुआ चेहरे से किया किनारा 

दुख की दरिया में डूबा दिखा वह 
भीतर ही भीतर रोता दिखा वह

 जग को हंसाने को दर्द अपना छिपाया
 अकेले में दुख दरिया में डूबा हुआ पाया 

तो क्यों ना मैं जग के संग ही रम जाऊं
 अकेले ना रहूं अगर वहां दुख में पाऊं

अरे हंस कर मैंने तुम्हें भी हंसाया 
अपना उसको भी बनाया जो था पराया

 विचार यही उसके मन में आने लगा था
 दुख अपना छिपाकर था तुम को हंसाया

 कुछ पल का जीवन है यह तुम्हारा हमारा
 हंस के बिताया हुआ हर पल है हमारा 

पिफर क्यों ना हम हंस कर यह जीवन बिता दें
हम दुख के समुंदर को दूर हटा दें

Sunday 22 April 2018

दोराहे राधा तिवारी ' राधेगोपाल '

दोराहे 
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फंस जाती हूं कभी-कभी दोराहे पर 
सोचती हूं इधर जाऊं तो कैसा होगा 
उधर जाऊं तो कैसा होगा 
यहां रहूं तो ऐसा होगा 
वहाँ रहूँ तो वैसा होगा
समझ नहीं आता है 
दो नाव में पैर रखना बड़ा मुश्किल है 
यदि एक नाव इधर-उधर हुई 
तो पैर डगमगाया और हम सीधा नदी में 
सोचती हूँ क्या यह दोराहे 
केवल मेरे ही जीवन में आते हैं 
या सभी को इन से दो-चार होना होता है 
काश इन दो राहों की जगह 
केवल एक राह होती 
तो fजंदगी हंसी खुशी चल पाती  
एक को छोड़ने का दुख नही होता 
न दूसरे को पकड़ने की कोfशश 
एक राह एक काम....

Friday 20 April 2018

"मेघ" राधा तिवारी ' राधेगोपाल'

                     
मेघ
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सर्व सुख दाता विधाता, हो मेरे मन भावना। 
नभ में मेघ बुलाकर करते, मौसम अतिसुहावना।। 

बारिशों की बूँदों से, पत्ते झूमें लहर हिलोर । 
तुम बसन्त में कर जाते हो, मन को बहुत विभोर।।

उमड़-घुमड़ कर जब तुम आते, सबके मन को हरसाते । 
गरज बरस कर ही जाते हो,  धरती पर हरियाली लाते।। 

रंग गन्दुमी जब भी नभ में, इधर उधर को मंडराए।
 तब सारी दुनिया कहती है, बादल आये बादल आए ।।

सूखी धरती करे निवेदन, बादल आओ बादल आओ। 
हरियाली उपजे धरती में, आकर पानी बरसाओ।। 

गर्मी से जब लोग तड़पते, तुम शीतलता लाते हो। 
तुम ही हो घनश्याम सलोने, राधे के मन भाते हो।।

Wednesday 18 April 2018

सूर्य का प्रकाश

सूर्य का प्रकाश
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   सूर्य का प्रकाश जब भी मेरे आँगन आता है
सुर्य की  चटक किरणों से घर मेरा जगमगाता है

 अंधेरे को दूर भगा उजियारा वह करता है
 दुख दर्द की पीड़ा हर कर गीत खुशी के गाता है

 सूर्य की किरणें सदा हर हाल में मिलती रहे
 सूर्य की ही रोशनी से हर कली खिलती रहे

 चारों दिशाओं में रवि तेरा ही गुणगान हो
 सुबह सवेरे उठते ही तेरा ही सम्मान हो

 तुम से होते दूर अंधेरे तुम जीवन वरदान हो 
तुम बिन यह जग कुछ भी नहीं तुम ही तो भगवान हो 

तुम से ही हम सोते जगते तुम ही ईश महान हो
सुबह सवेरे मेरा आँगन तुमसे ही प्रकाशवान हो

Friday 13 April 2018

दोहे "अम्बेडकर जयन्ती" (राधा तिवारी)

दलितों के अंबेडकर, तुमको कोटि प्रणाम।
संविधान निर्माण कर, पाया जग में नाम।।

भीमा देवी ने दिया, ममता और दुलार।
पिता राम का भी मिला, तुमको नेह-अपार।।

संविधान पर पुस्तकें, लिख कर पाया नाम।
स्वतंत्रता संग्राम में, झेले कष्ट तमाम।।

अपने बल पर ही मिला, तुमको भारत-रत्न।
देश-समाज सुधार के, किये बहुत प्रयत्न।।

बाबा ने कितने किये, दलितों पर उपकार।
आजादी के बाद में, दिया उन्हें उपहार।।

बलवानों के कर दिये, मनसूबे सब भंग।
संविधान ऐसा रचा, जगत रह गया दंग।।
राधा तिवारी (राधे गोपाल)
(राधा तिवारी "राधेगोपाल") 

Sunday 1 April 2018

दोहे "एक गरीब किसान" (राधा तिवारी)

खेतों में से अन्न को, रहा किसान समेट।
धरती का भगवान तो, भरता सबका पेट।।

घर की रखवाली करे, बनकर टॉमी शेर।
चोरों की पहचान में, नहीं लगाता देर।।

पाल रहा सबका उदर, निर्धन श्रमिक किसान।
पर उसके सन्ताप का, नहीं हमें अनुमान।।

शरद ऋतु की रात है, घास फूस का धाम।
बिना रजाई के नही, चलता है अब काम।।

सोच-सोच कर रो रहा, एक गरीब किसान।
कपड़े तन पर हैं नहीं, आफत में है जान!!