Sunday 31 October 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल" , आँसू , "दोहे"

 





आँसू* 

आँसू आँखों से बहेभीगे कोमल गाल। 
टपक रही हर बूँद हीकरती रही कमाल।।1।।

आँसू आ कर खोलतेमन के सारे भेद। 
लब चुप रहकर कर रहेअब तो केवल खेद।।2।। 

किससे मैं जाकर कहूँअपने मन की बात।
आँसू ने ही छीन लीसबसे यह सौगात।।3।। 

आँखों से बहती रहीआज अश्रु की धार। 
पलकों का भी भीग करहुआ आज उद्धार।।4।।

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राधा तिवारी "राधेगोपाल" , (कुण्डलिया ), लिखने का आधार

 




लिखने का आधार

मिलती गुरु से प्रेरणा ,लिखने का आधार
गुरुवर का आशीष तो, कर दे भव से पार
करदे भव से पार ,चरण में शीश झुकाना 
गुरुवर के तो पास ,सदा हो आना जाना। 
कह राधेगोपाल वहीं पर बगिया खिलती। 
लिखने का आधार, प्रेरणा गुरु से मिलती।।

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राधा तिवारी "राधेगोपाल " , सिंहावलोकनी दोहे

 


सिंहावलोकनी दोहे

 

प्यार भरा संसार है ,प्यार जीव का सार।

सार ज़िन्दगी का यही,कर लो सबसे प्यार।

प्यार बिना मत कीजिए,आप किसी से आस।

आस करोगे ईश से,हो जाओगे पार

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Saturday 30 October 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल" , "दोहे" , ऋतु बसंत का आगमन

 



ऋतु 
बसंत का आगमन

अन्न चढ़ाकर अग्नि में, करते हैं सब नृत्य।

 फसल खेत में देखकर करते अपने कृत्य।।

 पतंग उड़ाते हैं सभी, बाल वृद्ध नर नार।

 ऋतु बसंत का आगमन, भरते मन में प्यार ।।

घर घर जाकर बाल अब, माँगे  धन  मिष्ठान।

 इनकी तुम झोली भरो, हो सबका कल्याण ।।

ईश्वर से करते सभी, धन दौलत की चाह।

 भटक रहा है देश ये, दिखला  दो तुम राह।।

 उत्तरायणी पर्व पर ,मांग रहे सौगात

नहीं किसी की हार हो ,नहीं किसी की मात।।

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Friday 29 October 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल", दोहे, (सूरज फिर से झाँकता)

 






दोहे, (सूरज फिर से झाँकता) 

दाँया बाँया देखकर, सड़क कीजिए पार 
रहो सुरक्षित आप तब ,खुशियाँ मिले हजार

वाहन लेकर के चलो, कभी नहीं तुम तेज
 हेलमेट लेने से नहीं ,करना कभी गुरेज

सूरज फिर से झाँकताले बादल की ओट।
मन में उसके है नही , थोडा सा भी खोट 

रघुवर जैसा जगत मेंकोई नहीं है मित्र।
 उनका तो दिखता सदायुगो तक चित चरित्र।।

मेघ गर्जना कर रहेहै वीरों के बाण ।
न्योछावर अब हो रहेदेखो कितने प्राण।।

युद्ध भूमि को देखकरकरो नहीं तुम शोक।
इस क्षण को तो कभीकोई सका ना रोक।।

रावण ने हरदम कियाछल बल से ही काम।
 अभिमानी में इसीलिएहोता उसका नाम।।

मंडराता सब पर सदायुद्ध भूमि में काल।
दुश्मन तो हरदम चलेनई-नई सी चाल।।

 होता है जब सूर्यास्तबजता है  तब शंख।
 युद्ध भूमि में अब नहींहिल सकता है पंख।।

युद्ध क्षेत्र में तो सभीहोते हैं रणधीर।
 कोई बचा कोई मरा ,पर दोनों है वीर।।

क्षमा दया से मिल रहा,सबको ही सम्मान।
क्रोध घृणा तो कर रहासभी जगह अपमान।।

रावण का भी तो नहींरहा यहां अभिमान।
 अंत समय उसका कियासबने ही अपमान।।

दंभ घमंडी का हुआदेखो चकना चूर।
 शरण प्रभु की आ गयाहो करके मजबूर।।

युद्ध भूमि में हो रहीतीरों की बरसात।
 तीरों से ही कर रहेदेखो सब ही बात।।

आज विभीषण खोलतादेखो सब के भेद।
 जिस थाली में खा रहाउसमें करता छेद।।

लालच अच्छा है नहींकहते वेद पुराण ।
लालच के ही फेर मेंजाते कितने प्राण।।

जनक नंदिनी ने लियातिनके का ही ओट।
गर्भ घमंडी का नहींपहुँचा पाया चोट।।

भाई के स्पर्श को ,समझ रहे हैं राम ।
लक्ष्मण सेवक बन करेउनके सारे काम।।

 कांड कभी होता नहींलंका का हे राम।
 लक्ष्मण ऐसा बोलकरलेते हरि का नाम।।

हरी हृदय में बस रहे डरो नहीं फिर आप ।
ईश्वर ही हरते सदासबके ही संताप।।

डरो नहीं तुम है मनुजदेख समय की बात ।
सुबह सुहानी आएगीछट कर काली रात।।

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Wednesday 6 October 2021

राधा तिवारी" राधेगोपाल " युगल छंद

 

 परम पूजनीय गुरुदेव जी द्वारा प्रदत "राधेगोपाल छंद की 11/ 11" की मापनी पर आधारित यह नया छंद *युगल छंद*
🙏

युगल छंद 



■  युगल छंद का शिल्प विधान ■ 

वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,6 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,11 मात्राओं का निर्धारण 6, 6 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए

222 212 

222 212 

मगण रगण 

मगण रगण

*युगल छंद का उदाहरण*

222 212 
222 212 

युगल छंद

222 212
222 212

वह तो है आपकी ,मन की है मानता।
बातें सुनता रहा ,सब कुछ पहचानता।।

अपने ही मीत को ,आकर कुछ तो कहो।
जाएगा रोग तो, कुछ दिन इसको सहो।।

थकना मत आप तो ,जाएगा बीत ये।
आना जाना सदा ,है जग की रीत ये।।

सांँसे घटती रही, बढ़ती है आस तो।
देवों को जान लो, अपने ही पास तो।।

माता देती दुआ, सब कुछ तो है मिला।
घर में जो रह रहा ,उसका मन भी खिला।।

दरवाजा बोलता, ताले को डाल दो।
जाना अब तो कहीं ,कुछ दिन को टाल दो।।

सुन मेरी बात को ,वह तो हंँसता रहा।
अपने ही जाल में ,वह तो फँसता रहा।।

सहती जो पीर है ,अपनी तकदीर है ।
अब हमको दिख रही ,कैसी तस्वीर है।।

धीरज रखना सभी, जाएगा काल ये।
मुश्किल से है भरा , आया जो साल ये।।

राधा तुम भी रहो ,अपने निज धाम में।
मस्ती में चूर हो ,अपने ही काम में।।

राधा तिवारी 
"राधेगोपाल"
एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
 खटीमा,उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड
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परम आदरणीय भवानी सिंह राठौर जी द्वारा १९ अगस्त २०२१ को मेरा इंटरव्यू लिया गया

 

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HomejodhpurnewsRashtriyaSahityaव्हाट्सएप फेसबुक ग्रुप नवांकुरों के लिए सहयोगी है यदि वे मन लगाकर इसमें प्रतिभाग करें, साहित्यसृजन हेतु सशक्त माध्यम है।श्रीमती राधा तिवारी 'राधेगोपाल'
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नुंवो राजस्थान  गुरुवार, अगस्त 19, 2021  ,jodhpur ,news ,Rashtriya ,Sahitya

 'काव्य मनीषी' सम्मान प्राप्त वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकर श्रीमती राधा तिवारी 'राधेगोपाल' से साहित्यिक वार्तालाप। भवानीसिंह राठौड़ 'भावुक'।
व्हाट्सएप फेसबुक ग्रुप नवांकुरों के लिए सहयोगी है यदि वे मन लगाकर इसमें प्रतिभाग करें, साहित्यसृजन हेतु सशक्त माध्यम है।श्रीमती राधा तिवारी 'राधेगोपाल'


परिचय
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
पिता  - डॉ० भोला दत्त पांडेय
माता - श्रीमती आनंदी पांडेय
जन्म स्थान जोधपुर राजस्थान
पति- श्री गोपाल दत्त तिवारी
पता-खटीमा, जिला- ऊधमसिंह नगर (उत्तराखण्ड)
जन्म तिथि- 27 सितम्बर
शिक्षा- एम० ए०(अंग्रेजी), बी० एड०
कार्य- शिक्षण (अंग्रेजी अध्यापिका) 
वर्तमान विद्यालय - रा. उ. मा. विद्यालय सबौरा ( खटीमा)
पूर्व विद्यालय - रा ई का रीठाखाल (पाटी ,चपावत)
साहित्य सृजन-दोहा, ग़ज़ल, गीत, कविता, बाल कविता ,भजन ,मुक्तक , कुण्डलिया, हाइकु, चौपाइयाँ,सोरठा,रोला, घनाक्षरी, सवैया, लघुकथाएँ, माहिया, आल्हा,सवैया, उल्लाला, छंद मुक्त आदि।
प्रकाशित पुस्तकें-
जीवन का भूगोल (दोहा संग्रह) , सृजन कुंज (कविता संग्रह)
 राधे की अंजुमन (ग़ज़ल संग्रह),राधे की कुंडलियाँ ,लक्षिता (कुंडलियाँ संग्रह) ,जुल्फों के साए में (ग़ज़ल संग्रह ),सफ़र जिंदगी का (गीत संग्रह ), गुरुओं से संवाद (दोहा संग्रह) ,खामोश शहर (काव्य संग्रह),राधे के गीत( गीत संग्रह ),शब्दों का भंडार ( दोहा संग्रह) ,नन्हे कदम (बाल कविता)
साझा संग्रह 1.जहाँ मिले धरती आकाश 2.ये दोहे गूँजते से
3.गीत गूंजते हैं 4.गुंजन (हाइकु संग्रह) 5.ये कुंडलियाँ बोलती है 6. मृत्यु का वर्ष (साँझा विचार संकलन ) 7. काव्यांगन 8. अमृत कलश (काव्य संग्रह),9 . स्वदेश प्रेम (काव्य संग्रह )10 .The  year of death (collection of views) 11. कविता हिय के आंगन तक 12. विज्ञात की नव गीत माला 13. विज्ञात के साक्षात्कार 14. वीरांगना 15. कृतिका (काव्य संकलन) 16. पारिजात (लघु कथा संकलन) 17. सपना का अनुबंध (काव्य संकलन) 18. यह देश है वीर किसानों का (काव्य संकलन) 19. 2020 के अनुपम दोहे 20. वर्तिका (काव्य संकलन )
21 काव्य मधुबन (के बी एस प्रकाशन दिल्ली)
22 सौदामिनी सांझा काव्य संकलन
23 शाख ए ग़ज़ल (ग़ज़ल संग्रह)
प्रकाशनाधीन- सात पुस्तकें
सम्मान- "युवा प्रतिभा ", "नव सप्तक साहित्य ", "साहित्य श्री", "ब्लॉग श्री", "साहित्य कुमुद", "दोहा रत्न", "दोहा कलम ", "दोहा विशारद", "कलम काव्य गौरव, ' काव्य कलश ', " काव्य गौरव", "श्रेष्ठ सृजन" , Monal Women Empowerment Award 2019 "साहित्य सम्मान", "शहीद भगतसिंह सम्मान, "हौसलों की उड़ान", "काव्य सौंदर्य ", साहित्य शिल्पी,साहित्य साधक , "बहुविधा सृजन "," युवा शक्ति सम्मान" ,"कलम वीर सम्मान","कुंडलियाँ विधा विज्ञ "," कुंडलियांँ रत्न ”,"गुरु गौरव”, “कुण्डलियाँ विधा रत्न”, “कुण्डलियाँ विधा विज्ञ”.
"कलम सृजक", "वीरांगना रत्न सम्मान 2020", "कलम की सुगंध शिरोमणि लघु कथा सम्मान 2020","श्री काव्य रत्न सम्मान 2020",चंद्रमणि शतक वीर सम्मान 2021", "आल्हा छंद शतकवीर कलम की सुगंध सम्मान 2021","विभिन्न प्रथम सृजक सम्मान", "विभिन्न समारोह में संचालक सम्मान", "कलम की सुगंध दोहा रत्न ","वन्दे भारत प्रगति सम्मान -2021 "(गंगापुर सिटी सवाई माधोपुर राजस्थान),
"माहिया शतक वीर 2021",
विशेष
"राधेगोपाल छंद" ,  "राधेगोपाल सवैया"
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भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक':.सुर्यनगरी जोधपुर से अचानक उत्तराखंड में पहुंचने पर आपको कैसा महसूस हुआ?
राधे गोपाल तिवारी: हमारे लिए तो जोधपुर भी बढ़िया ही था क्योंकि हमारी मातृभूमि थी वह और उत्तराखंड आने पर तो स्वर्ग का अनुभव हुआ ।यहाँ पर दिन की गर्मी और लू  का सामना कम करना पड़ता 
कवि. आर. आर. साहु, छत्तीसगढ: बाजारवाद और साहित्यिक मूल्य पर आपका दृष्टिकोण ??
 राधे गोपाल तिवारी: देखिए हमारी लेखनी हमें सुख प्रदान करने के लिए लिखती है मगर आज हम इसे जब बाजार में बिकते हुए देखते हैं तो दुख होता है आज हम किसी भी क्षेत्र में देखें तो लेखक को अगर उसकी प्रतिभा से मापा जाए तो अच्छी बात है मगर यदि हम बाजारवाद के तरीके से देखें तो हम पाते हैं कि जो लेखक की लेखनी सशक्त भी नहीं है उसका नाम हो रहा है न जाने क्यों?
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक'.राजस्थान और  उत्तराखंड  के रहन सहन खानपान इत्यादी में आप कैसा अंतर महसूस करती है।वहां की कोई विशेष डिश जो आपको पसंद हो,बताइये?
राधे गोपाल तिवारी: राजस्थान के रहन-सहन ,खानपान को तो आप सभी जानते हैं ।
उत्तराखंड में विशेष रुप से पहले के लोग मडुवे के आटे की रोटी खाते थे ।चावल भी यहांँ पर विशेष प्रकार का होता था जो बहुत छोटे-छोटे दाने होते थे जिसे राजस्थान में सामा के चावल कहते हैं मडवा और चावल दोनों ही अब बहुत कम खाए जाते हैं अब जाओ गेहूं का आटा प्रचलन में अधिक है।सर्दियों में मडवा, मक्का, चावल की रोटियांँ अधिक खाई जाती है और इसके अलावा यहांँ पर काले और सफेद भट्ट होते हैं भट्ट की चुरकानी बनाई जाती है ।
(भट्ट को भिगोकर पीसकर उसकी दाल)गाय पालने का प्रचलन बहुत ज्यादा है दूध दही भी घर-घर में होते हैं और एक विशेष बात की मेरे ससुर जी ने तो कभी भी दूध घी बेचा नहीं जिसको भी दिया फ्री में दिया ।
वह कहते थे कि दूध भी कोई बेचने की चीज होती है बेचना नहीं है।
 

शिवराज सिंह चौहान : मरूभूमि से गिरीभूमि गमन का लेखन पर कितना प्रभाव पड़ा।
वहां की कौनसी विधा ने आपको प्रभावित किया ?
 राधे गोपाल तिवारी: देखिए मेरे लेखन पर तो प्रभाव पड़ा है वैसे मैं जब द्वितीय कक्षा में थी तब से मेरी लेखनी ने लिखना आरंभ कर दिया था सबसे पहले मैंने 1000 कहानियांँ लिखी ,दो उपन्यास लिखे जो आधे रह गए ।साँतवी क्लास में आने के बाद मैंने कविताओं को लिखना शुरू किया और उसके बाद मैं कविताओं में ही मेरी लेखनी चलती रही। 2008 में मेरी सरकारी नौकरी लगी और मैं अति दुर्गम क्षेत्र में अंग्रेजी पढ़ाने के लिए चली गई ।वहांँ का प्राकृतिक सौंदर्य ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया मगर साहित्य से दूर रहने के कारण मैं ज्यादा नहीं लिख पाई।जब 2017 में मैं पुनः सुगम में खटीमा में आ गई तो मेरी लेखनी पुनः अपना रंग दिखाने लगी।

शिवराज सिंह चौहानआपके ससुर की सोच को सौ-सौ सलाम
 
कवियत्री पुष्पा शर्मा 'कुसुम': उतराखण्ड का विशेष त्योहार?
आपके साहित्य सृजन के प्रेरणा स्त्रोत आप किसे मानते है
राधे गोपाल तिवारी: घुघुती त्योहार जिसमें आटे में घी गुड़ मिलाकर जिस तरह से हम शकरपारे (खजुरे) बनाते हैं उसी प्रकार कुछ व्यंजन बनाए जाते हैं और उसकी माला बनाकर बच्चों के गले में डाली जाती है।मकर सक्रांति के दिन खाए जाते हैं और सुबह सुबह इस व्यंजन को कौऔं को ऐसा बोलकर (काले कव्वा खा खा पूस की रोटी माघ में खा)दिया जाता है यह इसकी विशेषता है।
 बाबूलालजी दौसा: अब तक आपकी कितनी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
राधे गोपाल तिवारी: धनिया 2017 में मेरी दो पुस्तकें जीवन का भूगोल दोहा संग्रह और श्रजन कुंज काव्य संग्रह निकली और उसके बाद अभी तक मेरी कुल 13 एकल पुस्तकें निकल चुकी है जिसमें कुंडलिया, दोहे, गजल, कविताएं ,बाल कविता शामिल है।और लगभग 30 साझा संकलन निकले हैं।मृत्यु का वर्ष और the year of pendamik यह दो पुस्तकें विदेश से निकली है जिसमें हमारा कोविड-19 पर विचार दिए गए हैं
 
कवि बैजनाथ मिश्र बाबा कल्पनेश :मड़ुवा और झँगोरा(साँवा)दोनों ही आरोग्य प्रद हैं।पर हमारे बहुत से अन्न लुप्त होने के कगार पर है।इन्हें फसल चक्र में कैसे लाया जा सकता है?
 
राधे गोपाल तिवारी: हां पर भी लगभग यह विलुप्त ही हो चुके हैं अब केवल शुगर के लिए या किसी दवाई के तौर पर सर्दियों में खाते हैं
 
कवियत्री पुष्पा शर्मा 'कुसुम': विशेष त्योहार की जानकारी

भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' : आप राजस्थानी भाषा में भी लिखती है क्या?
 
राधे गोपाल तिवारी: नहीं हमें तो हिंदी भी नहीं आती थी।शादी के बाद हमने हिंदी सीखी क्योंकि अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने के कारण हिंदी का हमारा केवल एक विषय होता था।
 
राधे गोपाल तिवारी: आप लोगों का प्रोत्साहन मेरी लेखनी को और मजबूत कर रहा है 
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक'  जोधपुर में तो राजस्थानी आम बोलचाल की भाषा है,फिर आप कैसे अछूती रह गई आदरणीया
 

 

कवि बैजनाथ मिश्र बाबा कल्पनेश, प्रयागराज:बहुत लिखें।बहुत श्रेष्ठ लिखें।लिखना ही आप का धर्म है।नित्य दायित्व बोध जागृत रहे।लिखती रहें।
राधे गोपाल तिवारी: हमारे पापा डॉक्टर थे लेकिन हमारी पढ़ाई के प्रति ज्यादा सजग रहते थे ।राजस्थानी हम बोल लेते हैं लिख सकते हैं मगर जो चीज अच्छे से नहीं आती है उस भाषा का प्रयोग नहीं करें तो अच्छी बात है।क्योंकि कई बार भाषा के गलत प्रयोग से अर्थ का अनर्थ हो जाता है
 
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' : जी।आपको प्रयास तो करना ही चाहिए,आशा करता हूं भविष्य में आपकी एक पुस्तक राजस्थानी में भी छपे।
राधे गोपाल तिवारी: फिर हमें इतना समय भी नहीं मिलता था क्योंकि मैं खेलों के प्रति भी जागरूक थी विद्यालय में खेल बहुत खेलती थी कॉलेज में आने पर एनसीसी ली थी एनसीसी सी सर्टिफिकेट होल्डर हूं और इसके अलावा में रेडियो मैं भी युववाणी कार्यक्रम का संचालन करती थी।शैलेश लोढ़ा जी (तारक मेहता का उल्टा चश्मा)के साथ में मैंने बहुत कार्यक्रम किए और कई संचालन में भी हम दोनों साथ रहते थे

कवि बैजनाथ मिश्र बाबा कल्पनेश, प्रयागराज: यह सही है पर सतही लोक प्रियता कुछ दिन तक ही रहेगी।चोर -चोर मौसेरा भाई ।एक दूसरे को अच्छा कहना ही कहना है।

राधे गोपाल तिवारी: जी बिल्कुल अब मैं जरूर लिखूंगी और पटल पर भी भेजा करूंगी।
 
राधे गोपाल तिवारी: जी और दुल्हन अपने विवाह के पश्चात सामान लेकर आती है और मैं अपने साहित्य को उठा लाई जो आज भी मेरे अलमारी में सुरक्षित रखे हुए हैं।और खुशी होती है कि मेरे पति श्री गोपाल दत्त तिवारी जी ने कभी भी मेरी लेखनी पर उंगली नहीं उठाई बल्कि सदा ही मुझे प्रोत्साहित ही किया है।उनके और मेरे बच्चों के सहयोग से ही यह सब हो पाता है और आगे भी होता रहेगा।
 मदनसिंघ: सौभाग्यशालिनी है आप जो आपको परिवार का पूर्ण सहयोग मिलता है वरना कई परिवार मे ऐसा सहयोग नही मिलता 

बाबूलालजी दौसा: 
आपकी इतनी सारी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है, हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ,
अब साहित्य के लिए कोई विशिष्ट कृति भी आपके विचाराधीन है क्या, जो आप प्रकाशित करवाना चाहती हो?
राधे गोपाल तिवारी: जी बिल्कुल अभी तो मेरे पास उल्लाला छंद ,आल्हा छंद, खंडकाव्य ,माहिया छंद और बहुत कुछ है।
दो खंडकाव्य पर काम चल रहा है, दो पर विचार चल रहा है।नया सीखने की ललक हर पल मस्तिष्क में कौंधती रहती है जहांँ से जो नया मिले एक अबोध बालक की तरह सीखने को सदा उत्सुक रहती हूंँ।
 मदनसिंघ: तभी निखार आता है साहित्य के क्षेत्र मे
 






भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' : राधा और गोपाल!! ऐसी जोड़ी किसने मिलाई, रब ने!! संयोग ने?
राधे गोपाल तिवारी: इसे संयोग ही कहिए राधा जोधपुर राजस्थान में थी और गोपाल खटीमा उधम सिंह नगर में। हमारे पिताजी यहांँ आए बातचीत हुई और जब हमारा विवाह हुआ तो मैंने अपना उपनाम "राधेगोपाल" कर दिया 
 
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' ': क्या आपको जोधपुर के मिर्ची बड़ों की याद अब भी आती है?
 राधे गोपाल तिवारी: बहुत ज्यादा और जब हम साल में एक बार जोधपुर जाते हैं तो हमारे लिए मिर्ची बड़े मम्मी पापा पहले से ही मंगा कर रखते हैं। हमारे उत्तराखंड में मिर्ची बड़े नहीं मिलते हैं तो हम पकोड़े में मिर्ची डालकर पकोड़े बना लेते हैं लेकिन जो स्वाद जनता स्वीट होम या नेशनल हैंडलूम के मिर्ची बड़ों में आता है वह हमें कभी प्राप्त नहीं हो सकता और कचोरी भी यहांँ पर नहीं मिलती है और जब हम जोधपुर से उत्तराखंड को आते हैं तो मावे की कचोरी जरूर लाते हैं और यहांँ खिलाते हैं लोगों को।
 
कवि बृजमोहन गौड़: आज कवि सम्मेलनों में जो मसखरेबाजी चल रही है उस पर आपके क्या विचार है?
 राधे गोपाल तिवारी: हांँ मसखरे बाजी वाले कवि सम्मेलनों में कोई तुक नहीं है ।हम यूट्यूब चैनल खोलते हैं तो देखते हैं कि एक कवि और एक कवियत्री एक दूसरे पर जनता को हंसाने के लिए सब फब्तियाँ कस रहे हैं हमें तो यह कदापि पसंद नहीं है ।जो बात हम एक दूसरे की मजाक उड़ा करके करते हैं यदि उसे सरल सीधे तरीके से बोला जाए तो शायद वह हमारे मन मस्तिष्क पर ज्यादा प्रभाव डालेगी। हंँसाने वाली बात मात्र कुछ पल के लिए हो सकती है मगर भावपूर्ण रचनाएं, भाव पूर्ण विचार आज हमारे मस्तिष्क पटल पर अंकित हो जाते हैं।
 
राधे गोपाल तिवारी: और सिखाने के लिए भी मेरे पास ईश्वर की कृपा से सभी तैयार रहते हैं पहले मम्मी का सानिध्य मिला फिर दीदी का ,फिर खटीमा के एक भाई साहब महेंद्र प्रताप पांडेय जी का सानिध्य मिला उसके बाद साहित्य गुरु के रूप में मुझे खटीमा के जाने-माने कवि दोहा कार रूपचंद्र शास्त्री मयंक जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।कलम की सुगंध छंद शाला मंच पर गुरुदेव परम श्रद्धेय संजय कौशिक विज्ञात जी ने लगभग सभी विधाओं का ज्ञान कराया। धन्यवाद करती हूंँ मैं परम पूज्य बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ जी का जो सदा मार्गदर्शक के रुप में सभी कलम कारों के साथ रहते हैं। मेरे साथ भी रहते हैं और सदा उचित राह दिखाते हैं।
बाबूलालजी दौसा: आपकी श्रम निष्ठा अतुलनीय है 
मदनसिंघ: यह सौभाग्य है आपका कि सदैव श्रेष्ठ रचनाकारों की संगत मिली
राधे गोपाल तिवारी: इस पटल पर भी आप सभी विद्वत जनों से मैं नित कुछ न कुछ सीखती रहती हूंँ। आप सभी का आशीर्वाद सदा 
मिलता रहे
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' : ।उत्तराखंड के लोकगीत के बारे में भी कुछ बताइये?

राधे गोपाल तिवारी: झोड़ा, यह नृत्य का एक प्रकार है जो अक्सर होली के त्योहार पर किया जाता है ।इसमें बहुत सारे आदमी और औरतें एक गोला बना लेते हैं और एक जैसी कई अलग-अलग प्रतिक्रिया करते हुए नृत्य करते हैं, गीत गाते हैं।

आठों

कृष्ण जन्माष्टमी पर आरंभ होने वाला यह खेल प्रतिदिन एक घर में या मंदिर में किया जाता है इसमें भी महिलाएं पुरुष मिलकर एक दूसरे को कमर से पकड़ कर नृत्य करते हैं ,गीत गाते हैं।राधा कृष्ण की की पूजा सात आठ दिन तक होती है और बाद में उनका विसर्जन किया जाता है आठों का मतलब है कि 8 प्रकार के अनाज भिगोकर पका कर उसका प्रसाद बनाया जाता है आठों इसलिए मनाया जाता है क्योंकि श्री कृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र थे तो उन्हीं की लंबी आयु के लिए यह त्योहार मनाया जाता है।

 
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक'  आज आप मुख्यमंत्री जी मिलने गई थी! इच्छा है वहां के चित्र पटल पर भी साझा करे।



 राधे गोपाल तिवारी: मैंने माननीय मुख्यमंत्री जी को अपनी दो पुस्तकें "लक्षिता" कुंडलिया संग्रह और राधे की अंजुमन "गजल संग्रह" सप्रेम भेंट की।इससे पहले मेरी दो पुस्तकें "जीवन का भूगोल" दोहा संग्रह और सृजन कुंज "काव्य संग्रह" माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा अपने विधायक काल में विमोचन किया गया था।
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' : साहित्य के नव साधकों हेतु सोशलमिडिया व्हाटसएप फेसबुक पर साहित्यिक समूहों के योगदान को आप किस तरह से आंकती है।क्या ये समुह नवांकुरों के साहित्य सृजन में सहयोगी है?
राधे गोपाल तिवारी: जी सोशल मीडिया ,व्हाट्सएप फेसबुक ग्रुप नवांकुरों के लिए सहयोगी है यदि वे मन लगाकर इसमें प्रतिभाग करें, सभी की विधाओं को पढ़ें, रचनाओं पर ध्यान दें, शब्दों के चयन में भी यह बहुत उपयोगी होते हैं।बस एक विशेष बात मैं नवांकुरों से साझा करना चाहूंँगी कि कभी भी किसी लेखक की रचनाओं को चोरने की कोशिश न करें क्योंकि चोरी हुई रचनाएं सबकी नजरों में आ जाती है और इससे हमारे भविष्य पर, हमारी लेखनी पर सदा के लिए सवाल खड़े हो जाते हैं ।आप औरों की रचनाओं को पढ़िए मगर भाव और शब्द अपने रखिए।
बाबूलालजी दौसा: आप बहुत तीव्र(fast) लिखती हैं
कैसे ?
राधे गोपाल तिवारी: यदि तीव्र नहीं लिखा तो मन में आए भाव उड़ जाएंगे इसलिए स्पीकर ऑन करके बोल बोलकर लिखती हूंँ और फिर कीबोर्ड से उसे सुधारती हूंँ क्योंकि एक रचना लिखने में या तैयार करने में मुझे 5 से 7 मिनट या 3 से 5 मिनट ही लगते हैं।
इस बीच यदि नहीं लिखा तो भाव पलट जाते हैं और दूसरी रचना तैयार हो जाती है।
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक'  साहित्य समाज का दर्पण है,अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति पर आप क्या कहना चाहेंगी? कोई शेर सुनाइये!! एकदम तरो ताजा, या पांच श़ेरों की ग़जल ही कहकर भेज दीजिए
राधे गोपाल तिवारी: तब तक कुछ और प्रश्न पूछ लीजिए
राधे गोपाल तिवारी: साहित रा सिँणगार १०० मंच को नमन 
विधा ग़ज़ल 
विषय यम का राज
18/08/2021
रीत कैसी निभाने चले आज हैं।
रुक गए अब वहांँ के सभी काज हैं।
हाथ बंदूक लेकर चला शान से।
आज आतंक पर भी किया नाज है ।
काम अच्छे करो बात मीठी करो।
देश क्यों छोड़ जाता ये सरताज है।।
 
खौफ में जी रहे लोग अफगान में।
आज सब को डराता रहा बाज है।।
बात कलयुग की "राधे" करेगी यहाँ।
आज यम का यहांँ पर हुआ राज है।।
राधा तिवारी "राधेगोपाल"
 खटीमा,उधम सिंह नगर

 उत्तराखंड
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' : साहित्य साधना के दौरान आपको कौनसी विधा सीखना दुष्कर कार्य लगा।और क्यों?
राधे गोपाल तिवारी: मुझे कोई भी विधा सीखने में मुश्किल नहीं हुई न होती है। हांँ थोड़ी सी देर में ध्यान पूर्वक उस विधा पर विचार करती हूंँ और लिख देती हूँ।शब्दों का भंडार जब मेरे पास कम था तब परेशानी होती थी अभी भी लगता है कि यह शब्दों का कुबेर मेरा और भरे।
दोहे लिखने में परेशानी होती थी गुरुदेव से डांँट भी बहुत खाती थी। उनका कहा, उनकी बातें जब दिमाग में आती है तो उसी अनुरूप दोहे लिखने लगी हूंँ। इसके अलावा हाइकु विधा ने परेशान किया है।
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' ': साहित रा सिंणगार पटल के लिए आप क्या संदेश देना चाहती है। वर्तमान साहित्यिक गतिविधियों में और नया क्या सुधार होना चाहिए?
 राधे गोपाल तिवारी: साहित रा सिँणगार १०० बहुत शानदार है नित नई नई विधाओं में कलम चलाने का सभी को मौका मिलता है लिखने वाले लिखते हैं पढ़ने वाले पढ़ते हैं मगर सभी से कर जोड़कर अनुरोध है कि सभी लिखिए ।लिखकर भेजने से ,समीक्षा होने से हमारी गलतियांँ पता चलती है और लेखनी में सुधार होता है।नए-नए साहित्यिक विधा भी हम ला सकते हैं इसके अलावा हम कहानी संस्मरण लघु कथाएं का भी एक दिवस रख सकते हैं।कभी-कभी हम एक विशेष विधा पर चर्चा कर सकते हैं।हमारे नाम से राधेगोपाल छंद और राधेगोपाल सवैया ,विज्ञ छंद ,विज्ञ सवैया, भी विश्व पटल पर आ गया है
और भी कई नए छंद और सवैया आए हैं।कभी-कभी हम उस पर भी अपनी लेखनी चला सकते हैं।
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' ': आपका मनपसंद टीवी धारावाहिक
आपका मनपसंद साहित्यकार
आपकी मनपसंद राजस्थानी फिल्म
आपका मनपसंद अभिनेता
आपका मधपसंद फिल्मी गीत
आपका मनपसंद शहर।
राधे गोपाल तिवारी: टीवी सीरियल हम लोग,रामायण ,महाभारत।
मनपसंद साहित्यकार- आप सभी
राजस्थानी फिल्म डूंगर रो भेद
(विद्यालय द्वारा दिखाई गई थी)
अभिनेता शशि कपूर
फिल्मी गीत आ चल के तुझे मैं लेके चलूं एक ऐसे गगन के तले
मनपसंद शहर जोधपुर
भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' : राधेगोपाल छंद! इसका विधान और उदाहरण भेजिए आदरणीया

राधे गोपाल तिवारी: राधेगोपाल छंद 
■ राधेगोपाल छंद का शिल्प विधान ■ 
वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए
222 212

222 212 12
मगण रगण
मगण रगण लघु गुरु (लगा)
साहित रा सिंँगार१०० मंच को नमन

विषय पीड़ा
विधा राधेगोपाल छंद
222 212,222 212 12
कर लो तुम आज तो, बातें हमसे अभी सनम।
खुश हो मन में सदा,  बोलो हमदम सभी प्रियम।
आती पीड़ा रही, करते सब रोज सामना ।
मन की सुन लो जरा,राधे लेती यही कसम।।
राधा तिवारी 
"राधेगोपाल"
एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
 खटीमा,उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड

भवानीसिंघ राठोड़ 'भावुक' : आपका आभार।अपना अमुल्य समय प्रदानकिया।आशा है आपके सानिध्य में यह पटल उत्तरोत्तर वृद्धि करेगा।

राधे गोपाल तिवारी: आप सभी का आशीर्वाद इसी प्रकार बना रहे । ईश्वर से प्रार्थना है कि हम सभी की लेखनी निरंतर चलती रहे ।
साहित्य के क्षेत्र में हम सभी नित नया लिखते रहें ताकि आने वाली पीढ़ी कुछ नया सीखे। हमारी लेखनी आने वाली पीढ़ी का मार्ग दर्शन करती रहे। समाज में व्याप्त बुराइयों को हम अपनी लेखनी के माध्यम से उजागर करें और उसे दूर करने के उपाय भी अपनी रचनाओं के माध्यम से बताएं। 
 धन्यवाद आदरणीय आप सभी ने मुझे इतना प्यार और आशीर्वाद दिया ।अपने अमूल्य समय से आपने जो पल आज हमें दिए यह सदा यादगार बन कर मेरे साथ रहेंगे ,तबीयत खराब होने के बावजूद भी आप सभी मुझे पटल पर अपने प्रश्नों के माध्यम से उपस्थित कराते रहे इसके लिए धन्यवाद।

 
 

Tags jodhpur# news# Rashtriya# Sahitya#
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