जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
चली हूँ जब डगर अपनी तुझे मुड़ मुड़ के देखा है
अभी तो आपकी हमको बहुत इमदाद बाकी है
जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
सहारा बाह का मां-बाप को देते यहाँ बच्चे
जन्म भर पालते उनको यहाँ मर्याद बाकी है
जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
बनाए हैं यहाँ रहने को सबने आशियां अपने
मगर सबकी यहाँ पक्की रही बुनियाद बाकी है
जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
न जाना रूठ कर प्रियवर मना लूंगी तुम्हें आकर
राधा के तो धड़कन की अभी अनुनाद बाकी है
जिसे मैं भूलना चाहूं वही एक याद बाकी है
इमदाद मदद
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Friday, 7 September 2018
ग़ज़ल "फरियाद"( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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