Tuesday, 25 September 2018

बाल कविता "कोयल " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )

 बाल कविता "कोयल "
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पतझड़ का अंत हो रहा
चारों ओर बसंत हो रहा
फूल खिल रहे गुलशन गुलशन
 झूम रही तितली वन उपवन
 कोयल की है शान निराली
 गाती है होकर मतवाली

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