पिछले वर्ष में सोचो हमने ,क्या खोया क्या पाया है।।
महँगाई की मार पड़ी है, हुए लोग लाचार हैं।
सम्बन्धों को भूल गए सब, रिश्ते नाते भार हैं।।
शान्ति अमन का देश था मेरा, हिंसा कहां से आई है ।
प्रेम प्रीति को
त्याग दिया है, हिंसा क्यों अपनाई है।।
मौत रोज ही बुझा रही है, जलते हुए चरागों को ।
सीमाएं भी लील रही
है, अपने वीर अभागों को ।।
सब होंगे खुशहाल
यही तो, राधे करती है आशा ।
नए वर्ष में पूरी
होंवे, जन-जन की सब अभिलाषा ।।
महके आँगन बाग
हमारे, जन-जन भी खुशहाल रहे।
सभी तरह से मंगलदाई ,सबको नूतन साल रहे।।
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Sunday 31 December 2017
कविता "क्या खोया क्या पाया है" (राधा तिवारी)
Wednesday 27 December 2017
गीत "सत्य अहिंसा को अपनाओ" (राधा तिवारी)
धर्म हमेशा यही सिखाता
जीने की है कला बताता
जीव जंतु से प्यार करो तुम
करुणा का आधार धरो तुम
सारे जग को पाठ पढ़ाओ
सत्य अहिंसा को अपनाओ
धर्म हमेशा यही सिखाता
जीने की है कला बताता
माता पिता का आदर करना
गुरु का नहीं निरादर करना
मानव का मानव से नाता
वेद सभी को ये बतलाता
धर्म हमेशा यही सिखाता
जीने की है कला बताता
नफरत की दीवारें तोड़ो
शॉल शराफत का ही ओढ़ो
इंसानों के दिल को जोड़ो
कभी न पूजाघर को तोड़ो
धर्म हमेशा यही सिखाता
जीने की है कला बताता
रामराज्य साकार करो तुम
खाली झोली सदा भरो तुम
रावण राज न आने पाये
दुख के गीत न कोई गाये
धर्म हमेशा यही सिखाता
जीने
की है कला बताता
राधा तिवारी (राधे-गोपाल)
राधा तिवारी (राधे-गोपाल)
Saturday 23 December 2017
दोहे "ओ मेरे मनमीत" (राधा तिवारी)
तुमसे रूठूँ
जब कभी, ओ मेरे मनमीत।
प्यार और मनुहार से, मुझे सुनाओ
गीत।।
चार दिनों की जिन्दगी, कुछ पल का है
साथ।
मायूसी अच्छी
नहीं, मेरे
भोले नाथ।।
इश्क किया है
श्याम से, राधे का वो मीत।
लिखती उसकी
याद में, छन्दबद्ध मैं गीत।।
अदा निराली श्याम
की, रोज फेंकता जाल।
मुझे रिझाता
प्यार से, नन्द बाबा का लाल।।
मटकाती है राधिका,
कजरारे दो नैन।
मुस्काता
गोपाल जब, दिल होता बैचैन।।
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Tuesday 19 December 2017
कविता "शीत की बयार है" (राधा तिवारी)
हाड़ कप-कपा
रही, शीत की बयार है।
मेरे बाग में
भी आज आ गया निखार है।।
शीत से भरी
लहर, सभी को सता रही।
बाल-वृद्ध को
स्वयं का खौफ भी बता रही।।
थोड़े दिन की
बात है ठंड गुजर जाएगी।
गुनगुनी सी धूप थोड़े दिन ही
भायेगी।।
हो जुनून तो चलो कंटकों की राह में।
कदमताल को करो, मंजिलों की चाह में।।
रास्तों में फासले
हैं फासलों में रास्ते।
रुको नहीं,
थको नहीं तुम स्वयं के वास्ते।।
टूटने न
दीजिए डोर प्यार की सदा।
सब सुलझ ही
जायेंगी उलझने यदाकदा ।।
राधे को तो
शीत की बयार रास आ गयी।
नेह की तरंग में शरद ऋतु लुभा
गई।।
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Friday 15 December 2017
दोहे "रखो रेडियो पास में" (राधा तिवारी)
टीवी पर ही देखते, दुनिया के सन्देश।।
लाये फिर से रेडियो, मेरे भाई साब।
मिलता हमको है नहीं, इसका कोई
जवाब।।
सुनने में अच्छे लगें, भूले बिसरे गीत।
युववाणी के साथ हैं, मनभावन संगीत।।
काव्य गोष्ठी
हो रही, होता काव्य
प्रसार।
गागर में सागर भरे, यह छोटा संसार।।
समाचार सुन कर करो, दुनिया भर की सैर।
रखो रेडियो पास में, खतम करो सब बैर।।
छोटा सा है
रेडियो , खूँटी में दो
टाँग।
उठ जाओ तुम भोर में, जब मुर्गा दे बाँग।।
बूढ़े-बालक गांव के, लेकर इसको हाथ।
पीपल के नीचे सभी, सुनते मिलकर साथ।।
राधा देती है सदा, इस डिब्बे को मान।
यह बढ़ाता देश की, आन मान औ शान।।
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Sunday 10 December 2017
"स्मृति उपवन" का अभिमत (राधा तिवारी)
उत्तराखंड के जाने माने कवि
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी के संस्मरणों के संग्रह "स्मृति उपवन" का अभिमत लिखने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज माननीय मुख्यमंत्री जी के कर कमलों द्वारा "स्मृति उपवन" और "ग़ज़लियात-ए-रूप" पुस्तकों का विमोचन किया गया।
शास्त्री जी को दोनों पुस्तकों के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ,
साथ ही कामना करती हूँ कि उनकी लेखनी निरन्तर चलती रहे।
'स्मृति उपवन’ पठनीय और संग्रहणीय
संस्मरणों के संग्रह ‘स्मृति
उपवन’ के पुस्तकाकार करने हेतु बधाई और
शुभकामनाएँ स्वीकार करें। आपके संस्मरणों को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ और मैं भाग्यशाली हूँ कि
आपके इस संग्रह के विषय में अपने विचार दे रही हूँ। आपकी रचनाएँ पढ़ने का मौका
मिलता रहता है और आशा करती हूँ कि भविष्य में भी आपकी रचनाएँ पढ़ने को मिलती
रहेंगी।
इसी क्रम में आपकी काव्य रचनाओं से
सुशोभित आपके काव्य संग्रह धरा के रंग, रूप की धूप, हँसता
गाता बचपन, कदम कदम पर घास, नन्हे
सुमन और आपके द्वारा प्रकाशित प्रथम कविता संग्रह सुख का सूरज पढ़ने का मौका
मिला। कई वर्षों से आपके सान्निध्य में रहकर आपकी काव्य के प्रति रुचि को देखा
पर आज आपके संस्मरणों को पढ़कर तो मेरा मन गद-गद हो गया ।
बाबा
नागार्जुन से आपकी निकटता यह दर्शाती है कि आप सहृदय व्यक्तित्व के धनी हैं।
श्री रमेश पोखरियाल निशंक जिन्होंने उत्तराखंड
के मुख्यमंत्री पद को सुशोभित किया।
उनके विद्यार्थीरूप और उनके काव्य प्रेम को भी आपने अपने संस्मरण में जगह दी।
आपके संस्मरण पढ़ कर लगा कि आपको मानवों से
ही नहीं बल्कि पशु-पक्षियों से भी काफी लगाव रहा है। टॉमी, मिट्ठू
तोता, जूली वाले प्रसंग इनके जीवन्त उदाहरण
है। कबूतरों के लिए तो आपने कारपेंटर से लकड़ी का घर तक बनवा डाला। जिसमें कई
वर्ष तक कबूतर-कबूतरी ने तिनके-तिनके जोड़ कर घोंसला बनाया अंडे दिए और इस
संस्मरण से यह सीख देने की कोशिश की कि बच्चे बड़े होने पर किस प्रकार माता-पिता
को अकेला छोड़कर चले जाते हैं। इस बात ने आपके मन में गहरी जगह बनाई की जानवर ही
नहीं अपितु इंसानों के भी बच्चे बड़े होने पर अपने बूढ़े माता पिता को छोड़ कर
क्यों चले जाते है? जिन्होंने उनको पाल पास कर इतना बड़ा
किया।
आपने
अपने संस्मरणों में अपनी पत्नी श्रीमती अमर भारती जी को भी जगह दी है जिससे आपके
जीवन में अपनी जीवन संगिनी का स्थान साफ परिलक्षित होता है।
आपकी स्मृति आपके संस्मरणों में यह सिद्ध करती
है कि आप बचपन से ही स्मृति के धनी रहे हैं जो आपके सस्मरणों के संग्रह ‘‘स्मृति
उपवन’’ के नाम को सार्थक करता है।
संस्मरणों के साथ आपने तत्कालीन तस्वीरें
डाल कर अपने संस्मरणों को और भी जीवन्त कर दिया है। जिससे पाठकों का इसकी
प्रमाणिकता पर विश्वास और गहरा होगा।
‘कच्चे
धगों में उमड़ा है भाई बहन का प्यार’ आपका अपनी बहनों के प्रति प्रेम को
दर्शाता है। ‘दादी चम्मच का प्रयोग करो’ में आपने पाठकों को शिक्षा भी दी है जो
प्रशंसनीय है ।
आपके
संस्मरण ‘पहली बार बना दूल्हा-पहली बार चढ़ा
घोड़ी’ में हास्य रस भी परिलक्षित हुआ है।
इसके अलावा अखबार किस तरह पढ़ते हैं यह भी आपको बाबा नागार्जुन ने बहुत अच्छी तरह
समझाया है। ‘भय का भूत’ संस्मरण बताता है कि भूत का भय मानव के अंदर ही होता
है। जबकि भूत नाम की कोई चीज होती ही नहीं है।
बाबा नागार्जुन का घूमने का लगाव पढ़कर
लगा कि हमें अन्त समय तक अपने भीतर जीवन्तता बनाए रखनी चाहिए। लंगड़ा आम के बारे
मैं बाबा की सोच कि उसमें गुठली छोटी होती है और गूदा ज्यादा, जबकि
अन्य किस्म के आमों में गुठली और छिलके के सिवा कुछ भी नहीं होता है, यह
जानकर बनारसी आम की एक नई परिभाषा मिली।
‘स्मृति उपवन’ से हमें
गुरु-शिष्य के व्यवहार का ज्ञान का भी आभास हुआ। बाबा नागार्जुन के प्रति आपका
लगाव इतना था कि वे जब भी खटीमा आये तीन-चार दिन आपके घर जरूर ठहरे थे और आपके
विजय सुपर स्कूटर पर बैठकर बनबसा-टनकपुर तक घूमने जाते थे।
‘स्मृति उपवन’ को पढ़कर
लगा कि पहाड़ी क्षेत्रा के प्रति आपका प्यार विशेषकर लोहाघाट जहाँ आपके बचपन के
कुछ सुनहरे महीनें व्यतीत हुए, वहाँ के फल जैसे खुमानी, प्लम, भांग के
बीज वाली नींबू की चटनी और सरसों राई वाला पहाड़ी खीरे का रायता आपके पहाड़ व
प्रकृति प्रेमी होने को दर्शाता है।
‘बाल हठ’, ‘दादी
प्रसाद दे दो’ ने तो मेरा मन ही मोह लिया।
प्राची और प्रांजल का आपके संस्मरणों में
उल्लेख आपका अपनी पौत्रा-पौत्री के प्रेम को दर्शाता है। बाबा नागार्जुन और उनके
दो साथियों को अनुसूचित जाति की महिलाओं द्वारा पानी न पिलाना उस समय की सामाजिक
कुरीतियों को भी उजागर करता है।
ब्लॉग
लेखन एक आधुनिक कला है जिसका उपयोग आप ने भरपूर किया है। आप लेखन को कापी पेंसिल
का माध्यम न बनाकर सीधे ब्लॉग में ही उतार देते हैं। चाहे वह दोहे, छन्द, कविता, कहानी-गीत
या मुक्तक आदि ही क्यों न हों।
मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि
आपकी यह “स्मृति उपवन” प्रकाशित
होने के बाद पाठकों को बहुत प्रेरित करेगी।
मैं कामना करती हूँ कि आपकी लेखनी को इसी
प्रकार बल मिलता रहे। भगवान आपको आगे भी लिखने की प्रेरणा और शक्ति दे और रोज एक
रचना लिखने का आप का संकल्प कभी न टूटे।
आप दीर्घायु हों जिससे कि आने वाली पीढ़ियों
को आपके अनुभवों का लाभ मिलता रहे।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
राधातिवारी
‘राधेगोपाल’
(अंग्रेजीअध्यापिका-राज.उ.मा.विद्यालय)
सबौरा, खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर
(उत्तराखण्ड)
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