कलम सदा चलती रहे
कलम सदा चलती रहे, राधे की अभिराम।।
धाम धरा धन छोड़कर, जाए वन की ओर।
संत जनों ने छोड़ दी ,निज कुटुम्ब की डोर।।
बच्चों से तो मोह है, लेकिन प्यारा कंत ।
छोड़ो मत परिवार को, कहते ज्ञानी संत।।
मोह जगत का छोड़ दो, यह है मायाजाल ।
साधु संतों के लिए, सदन बना जंजाल ।।
कुटिया जंगल में बना, करते साधन योग।
ऐसे साधु संत को, लगता कभी न रोग।।
सरल स्वभाविक संतजन, करता जग उद्धार।
निर्धन बन वन में करें, जीवन नैया पार ।।
|
-
No comments:
Post a Comment