Saturday 25 November 2017

दोहे "करता क्यों अभिमान" (राधा तिवारी)

जब से जग में जिन्दगी, हुई नशे में चूर l 
हिंसा-बैर समा गया, हम सब मैं भरपूर ll

 करना नहीं गुमान को , धरती के इंसान l
 चार दिनों की जिंदगी , क्यों करता अभिमान ll

अग्रज से आशीष लो , दो अनुजों को प्यार l
 आपस के सम्मान की ,चलती रहे  बयार ll

 तेरा मेरा कुछ नहीं , यह संसार-असार l
 नहीं जाएगा साथ कुछ , कर ले जरा विचार ll

 रूप-रंग की रोशनी , सबको प्यारी होय l
 मीठी वाणी को रखो , नहीं पराया कोय ll

दो  दिन की है जिंदगी  ,करना नहीं गुमान l
 बैर किसी से मत करो ,सबका करना मान ll

ईश्वर ने हमको दिया , यह शरीर अनमोल l
ध़ड़कन के बिन है नहीं , काया का कुछ मोल ll

दौलत-धरती-धाम परकरना नहीं गुमान l
 माटी की इस देह पर, करता क्यों अभिमान  ll

राधे गोपाल

Saturday 18 November 2017

दोहे "नारी बहुत अनूप" (राधा तिवारी)

साड़ी में अच्छी लगे
भारत की हर नार।
नारि-जाति के साथ में
करना शुभ व्यवहार।।


कोमलांगी कहते इसे
शक्ति का यह रुप।
खुश रहती हर हाल में
नारी बहुत अनूप।।

बालों का जूड़ा बना, करती है सिंगार।
सजनी साजन को करे, खुद से ज्यादा प्यार।।

सिंदूरी हर माँग में , है साजन का प्यार ।
कंगन-पायल, चूड़ियाँ, छनकाती हर बार।।

कानों में झुमकी सजे, पायल बिछिया पाव ।
हंसी-खुशी चलती रहे , उसकी जीवन नाव।।

दो नैनों में है बसा ,साजन का ही प्यार।
नैनो में काजल लगा, हरसाती हर बार।।

सुंदर लगती नार है , गोद खिलाती लाल।
राधे का तो एक ही, है साजन गोपाल।।
(राधे-गोपाल)

Friday 10 November 2017

कविता "मां मैं तेरा बछड़ा हूँ" (राधा तिवारी)

भूखा हूं मैं मेरी मैया ,
मुझको भी कुछ खिलवादो।
इंसानों से कहकर मैया,
मुझको भी दूद्धू पिलवादो ।।

मां मैं तेरा बछड़ा हूं ,
दूध पे मेरा हक है ।
दूध यह सारा ले लेते हैं,
मुझको इन पर शक है।।

बेचा करते दूध दही,
पनीर मिष्ठान बनाते।
पर मेरे हिस्से का दुदु,
मुझको नहीं पिलाते।।

घास हरा मां तुमको देते,
और मुझे सूखा चारा।
खा लेता हूं चुपचाप मां,
मैं इतना बेचारा।।

मुंह दुखता है डंठल खाकर,
गले पर पड़ते छाले।
मेरे हिस्से का दूध छीन कर,
इनने अपने बच्चे पाले।।

जब बड़ा हो जाऊंगा,
मैं खेत में काम करूंगा।
हल पर लद कर,
माँ तेरा नाम करुंगा।।

अनाज बहुत होगा वहां,
पर हम को नहीं मिलेगा।
तू ही बता मां ऐसे इंसान को,
कैसे पुण्य मिलेगा।।

Saturday 4 November 2017

कार्तिक पूर्णिमा "बढ़ जाएगा प्यार" (राधे गोपाल)

गुरू पूर्णिमा पर सभी
करलो आज नहान।
संकट सारे दूर हों, 
कृपा करें भगवान।।

पावन दिन है जाइए
सब नदिया के तीर ।
ईश्वर की भक्ति करो
भर अंजुलि मैं नीर।।


जितना तुम को चाहिएउतना दे भगवान।
सच्चे मन से कीजिए,  ईश्वर का गुणगान।।

जलचर नभ में देख कर, मोर रहे ललचाय।
नाचूंगा मैं झूमकर, बरखा जो आ जाय ।।

फूल खिले हैं बाग में, षट्पद शोर मचाय।
मधुमक्खी का मन सदा, देख पुष्प हर्षाय।।

गंगा तट पर जा रहे, मिलकर रिश्तेदार ।
नहायेंगे जब साथ मेंबढ़ जाएगा प्यार।।

काशी जी के घाट पर , जलते दीप हजार ।
देव दिवाली का सभी ,मना रहे त्यौहार।।

शीशे में मत देखना अपना यौवन रुप ।
'राधे' तेरे रूप की, चार दिनों की धूप।।

Thursday 2 November 2017

ग़ज़ल "खिलता गुलाब हो" (राधा तिवारी)

प्रणय की तस्बीर तुम खिलता गुलाब हो
जो सबको बाँटे रौशनी वो आफताब हो

आता है दबे पाँव ही जो ख्वाब में सदा
शीतल सी चाँदनी तुम्हीं माहताब हो

आँखों में रात ही कटे, बातों में दिन कटे
जो आके नहीं जा सके तुम वो शबाब हो

जब हाथ में हो हाथ तो, पतझड़ बसन्त है
जो बिन पिये ही दे नशा, तुम वो शराब हो

राधे को घर में बैठे ही गोपाल मिल गये
दुनिया के हर सवाल का, खुद ही जवाब हो