घनघोर घटा बनकर बरसता रहा है वो।।
वह अदाओं से लुभाता है मुझको।
आंखों में बन के नूर सा चमकता रहा है वो।।
परिंदों को ना मिले शाख ना दीवार भी कोई ।
नीले गगन में भी सदा चहकता रहा है वो।।
नाटक वो कर रहे हैं कि पहचानते नहीं।
नाम ले लेकर मेरा मचलता रहा है वो।।
दिल की लगी का राधे कोई अंत नहीं है ।
जाम बन कर मुझ में झलकता रहा है वो।।
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