Wednesday, 19 September 2018

ग़ज़ल" मचलता रहा है वो"( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),

मचलता रहा है वो
मुझे याद करके रात दिन सिसकता रहा है वो।
 घनघोर घटा बनकर बरसता रहा है वो।।

 वह अदाओं से लुभाता है मुझको।
 आंखों में बन के नूर सा चमकता रहा है वो।।

  परिंदों को ना मिले शाख ना दीवार भी कोई 
नीले गगन में भी सदा चहकता रहा है वो।।

 नाटक वो कर रहे हैं कि पहचानते नहीं।
 नाम ले लेकर मेरा मचलता रहा है वो।।

 दिल की लगी का राधे कोई अंत नहीं है 


जाम बन कर मुझ में झलकता रहा है वो।।

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