बाल कविता "प्रकृति"
प्रकृति का मैं रूप सलौना
नई कोपलों के झुरमुट को
भंवरे समझे एक खिलोना
जब भी कभी पास में जाकर
अपने पंख वहां फैलाते
देख देख कर कलियां फूल
तितली जाती दुनिया भूल
फूलों का पराग पीती है
रस पीकरके वह जीती है
मधु लगता मक्खी को प्यारा
छत्ता बन जाता तब सारा
पर इंसा उसको ले जाता
मधुमक्खी को मार भगाता
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