जनसैलाब
गंगा जी के घाट पर, उमड़ा जनसैलाब।
जो सच्चे मन से भजे, पूरे होते ख्वाब।।
देव दिवाली नाम से ,है यह पर्व महान।
गंगा तट पर हो रहे, लाखों दीपक दान।।
दीपों की ज्योति सदा, यूं ही जलती जाए।
काम क्रोध अब ना रहे, मन निर्मलता पाए।।
नदी किनारे कर रहे ,सब जल में स्नान।
देव पूजकरके करो, इष्ट देव का ध्यान ।।
कार्तिक की है पूर्णिमा, पावन है दिन वार।
दीप जलाकर प्यार से, मना रहे त्यौहार।।
मंत्रोच्चारण को करें, कर लो पूजा जाप।
कार्तिक की है पूर्णिमा, तीरथ जाओ आप ।।
मन को निर्मल कीजिए, गंगा में कर स्नान।
शुद्ध हृदय में ही बसे, दयानिधि भगवान ।।
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Wednesday 28 November 2018
दोहे "जनसैलाब" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
Tuesday 27 November 2018
संस्कृत पर दोहे( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
संस्कृत पर दोहे
थोड़े शब्दों में बने, संस्कृत के सब वाक्य।
घर में जाकर कीजिए, आप सदा शालाक्य ।।
फोर्ब्स मैगजिन बोलते, संस्कृत को उपयुक्त।
बोलचाल में कीजिए, इसको भी प्रयुक्त।।
उपयोगी होती बहुत, है शब्दों की खान।
शब्दकोश इसका बड़ा, इतना लेना जान।।
सन् सत्तर में छप गया, संस्कृत में अखबार।
सुधर्मा के नाम से, जग में हुआ प्रचार।।
लिक्खे संस्कृत में यहाँ , सारे वेद पुराण।
जिन से मिलता है यहाँ , मानव को परित्राण।।
संस्कृत भाषा सीखकर, होता तेज दिमाग।
इससे ही है बन गए, सारे राग विराग।।
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Saturday 24 November 2018
ग़ज़ल, "शब्द में सिमट रही" (राधा तिवारी 'राधेगोपाल')
भूख से तड़प रहे हैं हड्डियाँ भी दिख रही
हाट में गरीब की रोटियाँ भी बिक रही
था गुमान बाप को, बेटी घर चलाएगी
आबरू को बेचकर बेटियाँ हैं टिक रही
भाइयों के हाथ में राखी बाँधती थी जो
भाइयों के सामने ही आन-बान मिट रही
मनचलों के राज में नजरबन्द बेटियाँ
मौन धृतराष्ट्र वहाँ, लाज जहाँ लुट रही
देख कर ऐसा चमन हो रहा मलाल है
राधे की तो शायरी शब्द में सिमट रही
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Tuesday 13 November 2018
दोहे "रहना हरदम साथ" (राधा तिवारी 'राधेगोपाल')
नेकी के हर काम का, करती हूँ आगाज़।
एक भरोसे राम के, लगा रही आवाज़ ।।
दौलत-शौहरत से नहीं, होती है पहचान ।
काम सदा ही नेक हो, मन में लो यह जान।।
हरियाली तो है नहीं, फिज़ाँ नहीं रंगीन।
सूखी खेती देखकर, कृषक हुआ गमगीन।।
वन में दिखते हर जगह, कितने ही सारंग।
कुछ चढ़ते है पेड़ पर, कुछ करते हुड़दंग।।
चारदीवारी को कभी, मत समझो तुम धाम।
जहाँ
रहे परिवार सब, उसका घर है नाम।।
कितनी हो मजबूरियाँ, रहना हरदम साथ।
मिलकर के तुम प्यार से ,सदा बटाना हाथ।।
समस्याओं को देखकर, मत होना हलकान।
सहन करो हंसकर सभी, जीवन के व्यवधान।।
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Thursday 8 November 2018
दोहे "कोजावत उपवास "( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
कोजावत उपवास
कहे बिहार बंगाल में , कोजावत उपवास ।
लक्ष्मी करने आ रही, धरती पर आवास।।
व्यापारी देना नहीं ,रुपया आज उधार ।
सोच समझ कर कीजिए , तुम अपना व्यापार।।
चंदा वर्षा कर रहा ,है अमृत की आज ।
ईष्ट देव को तुम भजो, पूरण होंगे काज।।
धवल चंद्र की चांदनी, देती सदा सुकून।
सबसे अच्छा है यहाँ , कुदरत का कानून।।
आदिदेव मेरे करो, मन से दूर विकार।
ग़र नहीं पूजा आपको, तो जीवन धिक्कार।।
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