Tuesday, 4 September 2018

खुशबू उसी की है ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ),



खुशबू उसी की है
जो बस गई है मुझ में वो खुशबू उसी की है
जो जी रही हूं जिंदगी वो भी उसी की है


रहता है आसपास मेरे साथ में सदा
खुलते हुए लबों की बंदगी उसी की है

तड़पा है दिल सदा ही जिस ख्वाब के लिए
सारा ही आसमान और जमी उसी की है

हंसते हैं और रोते हैं, हम रात दिन तमाम
रो करके जब हसे तो ये हंसी उसी की है

सारे ही जग को घूमकर में देख आई हूँ 
सब कुछ मिला है पर एक कमी उसी की है

आंखों में अश्क हमने छिपा करके रख लिए
पलकों पर राधे आज नमी भी उसी की है



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