Saturday 25 December 2021

राधा तिवारी , "राधेगोपाल" , "दोहे" , एक विदेशी रोग

 

एक विदेशी रोग

राज सभी पर कर रहाएक विदेशी रोग।
डरे डरे से हैं सभीसकल विश्व के लोग।।

राधे लो संकल्प कोरह लेना निज धाम।
रोग बड़ा गंभीर हैकोरोना है नाम।।

चूक अगर थोड़ी हुई फैलेगा यह रोग।
हाथ मिलाना छोड़ दोदूर रहो सब लोग।।

हाथ जोड़कर कीजिएसबका ही सत्कार।
कोरोना करता नहीं ,इन पर कभी प्रहार ।।

साफ सफाई का रखो,, राधे हरदम ध्यान ।
हाथ मिलाने से करे ,कोरोना नुकसान ।।

हाथ सौंप दो ईश केजीवन की पतवार।
आसानी से राधिकाहो जाओगे पार।।

डरो नहीं इस रोग सेहो जाओ तैयार।
रहो अकेले शान सेहोगा इस पर वार ।।

घर पर ही सब बैठ करले लो हरि का नाम ।
राधे ने सबको दियाएक यही पैगाम ।।

घर में रहने से नहींलगता कोई पाप।
इससे तो घटता सदाकोरोना का ताप ।।

करना है गर आपकोकोरोना को चूर।
कुछ दिन तो रहे लीजिएअपनों से तुम दूर ।।

कोरोना के नाम सेआया कैसा रोग।
माता तुम भी ध्यान दोडरते सारे लोग।।

गाँव घरों को आ रहेहैं विदेश से लोग।
फिर क्यों अपने देश में ,रहे विदेशी रोग।।

Thursday 23 December 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल" , दोहे , लेकर डंडा हाथ

 


लेकर डंडा हाथ
मिला तुम्हारा प्यार जब, भूली में संसार
ईश्वर से कम है नहीं, सजन तुम्हारा प्यार।।

नैनो में काजल बसाबिंदी सोहे भाल
हाथ मुरलिया सज रहीगल बैजंती माल।।

साया बनकर राधिका ,चलती हरदम साथ
कान्हा जी तुम भी चलो, ले हाथों में हाथ।।

दौलत हमको रोग से, बचा रही कब आज
घर में ही बैठा दिया ,बंद किए सब काज।। 

बड़ा भयंकर वायरस, आया है श्रीमान
बैठो सब निजधाम में, रहे सुरक्षित जान।।

हाथ मिलाने से बड़े ,संक्रमण का रोग
हाथ जोड़कर कर रहे, नमस्कार सब लोग।।

जुटे हुए सब तंत्र हैजुटा राज दरबार ।
संकट के इस काल सेकैसे होंगे पार ।।

पुलिस प्रशासन बोलतादे दो तुम भी साथ।
वरना हम सब हैं खड़ेलेकर डंडा हाथ।।

बंद सभी उद्योग हैंबन्द सभी औजार। 
सरकारी सब तंत्र भी,होता जाता ज़ार।।

Wednesday 22 December 2021

राधा तिवारी " राधेगोपाल " , "राधे की अंजुमन पुस्तक की भूमिका"


 



भूमिका

"राधे की अंजुमन

दिल से निकली ग़ज़लें

    साहित्य जगत में नवोदित राधा तिवारी की दो पुस्तकें “सृजन कुंज” (काव्य संकलन) और जीवन का भूगोल” (दोहा संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल ही में इन्होंने ग़ज़लों पर भी अपनी लेखनी चलाई है और “राधे की अंजुमन” के नाम से इनका ग़ज़ल संग्रह अब प्रकाशन की कतार में है। मैं अपने को सौभाग्यशाली समझता हूँ कि राधा तिवारी मुझे अपना गुरु मानती हैं और अपने प्रत्येक नये सृजन को मुझसे साझा करती है। “राधे की अंजुमन” की पाण्डुलिपि को मैंने कई बार सांगोपांग बाँचा है।

     ग़ज़ल बहुत पुरानी तथा नाजुक विधा है। सीधे-सादे शब्दों में अपनी बात को कहना एक कला है। गज़लों के अशआर अगर दिलकश होंगे तो जनमानस पर सीधा असर करेंगे। कवयित्री राधा तिवारी (राधेगोपाल) ने “राधे की अंजुमन” में इस रवायत को बाखूबी निभाया है। 

     अपनी बात में कवयित्री ने कहा है-

      “...मुझे बचपन से ही लिखने में  बहुत रुचि रही है। कक्षा दो से मैंने लिखना आरंभ किया और तब से निरंतर आज तक लिख रही हूँ। अब तो मेरी लेखनी मुझे हक से कहती है की रचना कर। कभी मेरे शब्द मेरे भाव कविताओं का रूप लेते हैं तो कभी दोहे ग़ज़ल कुंडली हाइकु गीत आदि रचते रहते हैं।  हाल ही में मेरी पुस्तकें 'सृजन कुंज ' काव्य संग्रह और 'जीवन का भूगोल' दोहा संग्रह निकली थी और अब आपके सामने मैं अपना ग़ज़ल संग्रह "राधे की अंजुमन" लेकर आयी हूँ”....

      .....आज मेरे लिखने का आलम यह है कि घर के हर छोटे-बड़े कार्य करते समय, सोते जगते समय ,मेरे पास मेरी डायरी जरूर रहती है कि कहीं मुझे कुछ विचार आए और वह मैं न उतार पाई तो वह विचार फिर से नहीं आएंगे तो विचारों को शब्दों का रूप देकर के मैं निरंतर लिखती रही, और लिखती रहूँगी।....

      कवयित्री ने अपने ग़ज़ल संग्रह “राधे की अंजुमन” का श्री गणेश माँ वीणापाणि की वन्दना में लिखी ग़ज़ल से किया है, जो आपको माता के प्रति समर्पण को स्पष्ट रूप से दर्शाता है-

वीणा वादिनी आपकी, जबसे शरण में आई हूँ

मातु आपकी किरपा से, मैं विदुषी कहलाई हूँ

--

वरद हस्त राधेके सिर पर, रखना मेरी मातु सदा

साथ तुम्हारा पाकर मैया, मैं भी तो इठलाई हूँ”

     हमारे आस-पास बहुत से बिम्ब बिखरे हुए हैं। जिन पर कलम चलाना विरले ही जानते हैं। राधा तिवारी ने दर्पण को अपनी ग़ज़ल में जिस प्रकार उकेरा है, वो देखते ही बनता है-

“सुधरना है हमें कैसे यही दर्पण सिखाते हैं

सवँरना है यहाँ कैसे हमें दर्पण बताते हैं

--

खरीदारी करें कैसे यहाँ है माल इक जैसा

मगर तारीफ करके माल सब अपना बिकाते हैं”

     नये जमाने के प्रति अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए कवयित्री ने अपनी ग़ज़ल कुछ इस प्रकार से कही है-

“आजकल के जमाने को क्या हो गया

नौजवानों के दिल को ये क्या हो गया


देखते दूसरों की सभी खामियाँ

हमने शीशा दिखाया तो क्या हो गया”

      देशभक्ति की भावना पर बल देते हुए कवयित्री लिखती है-

“सेवा करने को वतन की आइए

देश भक्ति के तराने गाइए

--

रास आएगी उन्हें भी जिंदगी

घर गरीबों के बनाते जाइए”

       इस संकलन की उम्दा ग़ज़ल आजकल के आदमी पर कटाक्ष करते हुए रची गई है-

“आदमी ही आदमी को आज छलता जा रहा

हर समय भूतल तवा सा आज जलता जा रहा

--

नेकियाँ अब तो सभी फरेब बनती जा रही

भाई ही भाई को अब तो रोज खलता जा रहा”

       बीते लम्हें कभी किसी का पीछा नहीं छोड़ते। उन्हीं पलों को ग़ज़लगो राधा तिवारी ने अपने शब्दों में इस प्रकार से बाँधा है-

“बिसरती है तेरी यादें उन्हें फिर ढूँढ लाती हूँ

गुजर जाती है जो घड़ियां उन्हें फिर से जगाती हूँ

--

चुरा लूँ मैं सितारों को घटा घनघोर है छाई

धरा का तम मिटाने को मैं जुगनू को बुलाती हूँ”

        कवयित्री पर्वतीय मूल की है और उसे पहाड़ी परिवेश बरबस याद आ ही जाता है। जिसे उसने अपनी ग़ज़ल में इस प्रकार से कहा है-

“दिख रही ऊंची पहाड़ी दूर तक

दिख रहे जंगल व झाड़ी दूर तक

--

पेड़ पौधे तो धरा की शान है

पर चली इन में कुल्हाड़ी दूर तक”

      शिक्षिका होने के नाते कवयित्री ने अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए लिखा है-

“स्कूल में हमारे, अब खेल हो रहे हैं

बच्चे यहाँ के सारे, खेलों में खो रहे हैं

--

खो खो कहीं कबड्डी, कहीं कूद हो रही है

जिनको लगी है चोटें, वह खूब रो रहे हैं”

      आधुनिक परिवारों के प्रति भी ग़ज़लकारा ने अपनी सम्वेदना प्रकट करते हुए लिखा है-

“जगत में तन्हाई बढ़ती जा रही है

दिलों में अब खाई बढ़ती जा रही है

--

प्यार से पाला था जिनको उम्र भर

उनकी बेवफाई बढ़ती जा रही है”

       परिणय और प्रणय पर अपने अनुभव को साझा करते हुए कवयित्री लिखती है-

“दुल्हन अपना पिया देखकर क्यों इतना शर्माती है

नाक में नथनी कान में कुंडल पहनके क्यों इतराती है

--

साजनजी जब पास बुलाते हौले-हौले जाती है

जब पायल के घुंघरू बजते मन में क्यों इठलाती है”

     अपनी बहुआयामी ग़ज़ल में राधा तिवारी लिखती है-

“जो बस गई है मुझ में वो खुशबू उसी की है

जी रही हूँ जिंदगी वो भी उसी की है

--

रहता है आसपास मेरे साथ जो सदा

हंसते हुए लबों की बंदगी उसी की है”

       एक कामकाजी महिला के लिए अपने व्यस्त जीवन चूल्हे-चौके से लेकर साहित्य रचना के लिए समय निकालना बहुत कठिन होता है। मगर राधा तिवारी ने अपने सभी दायित्वों का कुशलता से निर्वहन किया है।

      हमारे आस-पास जो कुछ घट रहा है उसे कवयित्री राधा तिवारी ”राधेगोपालको उसे शब्द देने में विशेष महारत है। ग़ज़ल के सभी पहलुओं को संग-साथ लेकर अशआरों में ढालना एक दुष्कर कार्य होता है मगर विदूषी कवयित्री ने इस कार्य को सम्भव कर दिखाया है। कुल मिलाकर देखा जाये तो इस काव्य संग्रह की सभी ग़ज़लें बहुत मार्मिक और पठनीय है। हकीकत तो यह है कि इस मजमुए की अभिव्यक्तियाँ मील के पत्थर जैसी हैं।

      मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी है कि राधे की अंजुमनकी ग़ज़लें पाठकों के दिल की गहराइयों तक जाकर अपनी जगह बनायेगी और समीक्षकों की दृष्टि में भी यह उपादेय सिद्ध होगी। 

      मुझे यह भी आशा है कि  मेरी शिष्या राधा तिवारी “राधेगोपाल” की साहित्य की जानी-मानी विधाओं पर और भी कई कृतियाँ जल्दी ही प्रकाशित होंगी। 

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-

 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

कवि एवं साहित्यकार

टनकपुर-रोड, खटीमा

जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308

मोबाइल-7906360576

Website. http://uchcharan.blogspot.com/

E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com

--

http://uchcharan.blogspot.com/2020/01/blog-post_9.html


Tuesday 21 December 2021

राधा तिवारी राधेगोपाल , "ग़ज़ल" , राज कैसे खोलती है

 


ग़ज़ल 
राज कैसे खोलती है



आज कमसिन सी जवानी दृग पटल को खोलती है।

ले हया का एक पर्दा झाँक कर कुछ बोलती है।।


वो अदाओं में सिमट कर आज कैसे चल रही।

देख हिरनी सी बिदकती डोलती हैैं।।


बंद जो जूही कली थी अब तलक तो इस जगत में।

नयन में कजरा लगा कर राज कैसे खोलती है।।


देख रघुवर सामने अब चँद सी आभा लिए।

आज पलकों को उठा कर इस जगत को टोलती है।।


रूप मंजुल सा धरा श्रृंगार कर गोरी चली।

प्यार की मुस्कान से ही अब पिया को झोलती है।।



Saturday 11 December 2021

*राधा तिवारी"राधेगोपाल", कुंडलियां वेणी, कुमकुम

 





राधा तिवारी , राधेगोपाल , दोहे , मात-पिता के साथ में,

 




 अनमोल दोहे 

फसल पक्की जब खेत मेंखुश हो गया किसान।
लेकर गट्ठा हाथ मेंजाता ये नादान।।

मात-पिता के साथ मेंकाम करे संतान।
अब तो यह भी ला रहेघर में गेहूँ धान।।

 मास्क लगाकर कर रहेसब आपस में बात। 
कोरोना करने लगाआपस में आघात।

हाथ मिलाना छोड़ करहाथ जोड़ते लोग।
डर कर के सब रह रहेआया कैसा रोग।।

डॉक्टर सब चौकस हुएकरने को उपचार।
पर सबका ही बदल गयाआज यहाँ व्यवहार।।

सड़कें सूनी हो गईबंद सभी बाजार।
लॉक डाउन के दौर सेकैसे होंगे पार।।


Thursday 9 December 2021

राधा तिवारी राधेगोपाल , दोहे , जनरल विपिन रावत 08/12/2021

 



जनरल विपिन रावत
08/12/2021

सूरज बन चमका सदा, हुआ आज क्यों लुफ्त।
चलते चलते लोग सब, हुए आज क्यों सुप्त।।

देश भक्ति परिवार में ,भरी रही भरपूर।
पौड़ी उत्तराखंड के ,लाल है मशहूर।।

लक्ष्मण सिंह पापा बने , घर में जला चिराग।
बन जनरल रावत विपिन,जगा दिया है भाग।।

माता कोलिन कोच को,मिला यही सम्मान।
गोदी में खेले विपिन,बनकर उनकी शान।।

मधु रस घोले मधुलिका , भर जीवन में रंग।
बँधी प्रीत की डोर से,मरी उन्हीं के संग।।

साथ निभाने के लिए ,रहती हरदम पास ।
जनरल को हरदम रही, उनसे हर पल आस।।

शिक्षा दिक्षा के लिए, गए देहरादून।
अब क्यों उनका हो गया, यह जीवन भी सून।।

फौजी बन करके किए,पालन सब कानून।
जीवन भर महका सदा ,बनकर वही प्रसून।।

काम सभी उसने किए ,बनकर सदा दबंग।
अरि सेना को भी यहाँ, दिखा दिए थे रंग।।

दुश्मन को देते रहे ,विपिन सदा जवाब ।
बन करके ही वे रहे, खुलती एक किताब।।

बात सभी की आपने ,हरदम सुनी जनाब।
दुश्मन को देते रहे ,हर पल आप जवाब।।

काम सदा अच्छे किए, मिले खूब सम्मान।
आज अचानक ही गए, छोड़ सभी पहचान।।

भारत माँ के लाल ने, लिया तिरंगा ओढ़।
जलकर वाहन हो गया, जैसे होता कोढ़।।

भारतवासी हो गए, देखो सारे मौन।
गए वीर यह जिस तरह, जाता ऐसे कौन।।

याद करेगी यह धरा, और सदा आकाश।
चार दिशा में फैलता ,देखा आज प्रकाश।।

दुखी आज संसार है ,आंँखें हैं गमगीन।
तेज लुप्त सा हो गया, जो था कल रंगीन।।

राधा तिवारी "राधेगोपाल"
एल टी अंग्रेजी अध्यापिका
 खटीमा,उधम सिंह नगर
 उत्तराखंड
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