Friday 28 May 2021

दोहे, सीता सोचे राम को

 






सीता सोचे राम को

मिला यहाँ पर राम कोदारुण दुख संताप।
 कभी-कभी निज काम काहोता पश्चाताप।।

सीता सोचे राम कोयहाँ  सदा दिन रैन।
 सुनकर बातें राम कीमिलता उसको चैन।।

सच ही कहने का यहाँ करना सदा प्रयास।
 झूठ बोलकर टूटतासबका ही विश्वास।।

 सोच यदि अच्छी रहेअच्छा हो परिणाम।
 भजने से श्रीराम कोबनते सारे काम।।

 किया गदे से मारकरराक्षस का संहार।
 हनुमत का तो तेज थाकेवल मुट्ठी प्रहार।।

धन्य हुई माँ  भारतीपाकर पुण्य पीयूष। 
महत्व ले उगता रहायहाँ घास अरु फूस।।
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Wednesday 26 May 2021

राधा तिवारी राधेगोपाल अनमोल दोहे

 


अनमोल दोहे 




सूर्य देव भगवान को, चढ़ा रहे सब नीर ।
राधे कहती है प्रभु, हरो सभी की पीर।।

 गए पिता संसार से,  सका न कोई रोक
इतने सारे लोग थे ,सबको ही था शो क ।।

 कुरुक्षेत्र में दिख रही, देखो कितनी लाश 
कोई तीरों से मरा, कहीं जकड़ता पाश ।।

दिनकर फिर आकाश मेंलेकर आया भोर।
खुशबू आती फूल ससे ,है बच्चों का शोर।।

 तितली आई बाग मेंकरने को रसपान।
 कोयल का सुन लीजिएआप मधुर सा गान।।

 नई शाख आने लगी, खिल जाएंगे फूल  
धरती हमको दे रही ,सभी समय अनुकूल ।।

बैठ  धाम में आप भी बचा लीजिए जान ।
नवजीवन सबको मिले, मेरा कहना मान।।

होकर के गंभीर सब , रह लेना निज धाम ।
जान बचाने को करो आप सभी आराम।।

 बैठी तितली फूल पर, आया भँवरा  पास।
 फूल उन्हें लगते रहे, हरदम जग में खास।।


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Saturday 8 May 2021

भोजन का पर्याय

 

भोजन का पर्याय

चमत्कार ऐसा हुआघर में बैठे लोग।
 कोरोना को छोड़करभागे सारे रोग ।।

कोरोना भी जाएगारखना मन में धीर।
 कर देंगे कमजोर हमबनकर के रणधीर।।

 मंदिर घर के खुल गएईश्वर आए पास।
 घर में ही रह कीजिए पूजा अरु उपवास ।।

परिवार के साथ मेंकरिए पूजा जाप ।
कोरोना की तो कड़ी,यूँ तोड़िए आप ।।

दाल और रोटी बनीभोजन का पर्याय 
काम सभी अब बंद हुए ,बंद हो गई आय।। 

घर में ही कर काम को ,कर लेना आराम
 खाना खाना बाद में,पहले कर व्यायाम।।

तीन मई तक बैठिएसब फिर से निज धाम।
जीवन में इस रोग से , मिल जाए आराम 
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एक और सांझा संकलन

 




आज अखिल भारतीय साहित्य मंच साहित्य साधक द्वारा निकाली गई साझा काव्य संकलन "वर्तिका" आज डाक विभाग द्वारा हमें प्राप्त हुई ।

डाक विभाग को कि मैं हमेशा आभारी हूंँ जो यथा समय मेरी पुस्तकें मुझ तक पहुंँचा देते हैं।

पुस्तक के संपादक कृष्ण कुमार क्रांति जी का हृदय से आभार ।जिज्ञासा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में अनेक जाने-माने रचनाकारों ने प्रतिभा किया है।

" मैं राधा तिवारी राधेगोपाल खटीमा उधम सिंह नगर से उत्तराखंड राज्य प्रभारी के रूप में भी इस संस्था के साथ में जुड़ी हुई हूंँ" ।

आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ।पुस्तक का कवर पेज बहुत ही लुभावना है और अंतिम पृष्ठ पर सभी रचनाकारों की फोटो लगी है जो बहुत ही आकर्षक है ।पुस्तक में कम ही प्रतिभागी हैं मगर पुस्तक बहुत अच्छी प्रकाशित हुई है ।सबसे पहले साहित्य साधक मंच के उपाध्यक्ष परम आदरणीय उदय नारायण सिंह जी का शुभानुशंसा है ।संपादक जी का संबोध के बाद आदरणीय कृष्ण कुमार क्रांति जी और तदुपरांत मेरी रचनाएं प्रकाशित हुई है ।सभी लेखकों, सभी प्रतिभागियों का मैं हृदय से आभार प्रकट करती हूंँ जिन्होंने इतने सुंदर लेखनी से पाठक वर्ग के लिए काफी कुछ लिखा है ।सभी प्रतिभागी एक से बढ़कर एक रचनाकार हैं और सभी ने पुस्तक को आकर्षक बनाने के लिए अपनी लेखनी का खूब उपयोग किया है ।

जिज्ञासा पब्लिकेशन को मैं पहले से जानती हूंँ। मेरी कई एकल किताबें आपने प्रकाशित की है और कई साझा संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं ।

आपके द्वारा किया गया कार्य सदा ही प्रशंसनीय है कवर पेज और पेपर बहुत शानदार हैं।

 

राधा तिवारी

"राधेगोपाल"

उत्तराखंड राज्य प्रभारी

साहित्य साधक मंच

एल टी अंग्रेजी अध्यापिका

 खटीमा,उधम सिंह नगर

 उत्तराखंड

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राधा तिवारी" राधेगोपाल " , दोहे (विद्वानों की बात)



विद्वानों की  बात

 कष्ट सहो  संयम रखो, रहो सभी निजधाम 
 आप अकेला बैठ कर,कर लेना विश्राम ।।

विद्वानों की  बात का, रखा सभी ने ध्यान 
पालन बातों का करें, अपना हिंदुस्तान ।।

पर्व  मनाता  हैं सभी ,अपना हिंदुस्तान 
हमको तो लगता यही, देवों  का वरदान ।।

ले लेना तुम फैसला, हो करके मजबूर 
अपने हित को छोड़कर, रहना सबसे दूर ।।

रखो देशहित ध्यान में, सुन लो मेरी बात 
निकलो मत घर से कभी, कुछ दिन तक तो आप ।।

विनती है कर जोड़ के, रहो सभी से दूर 
हाथ मिलाना छोड़कर ,जोड़े हाथ जरूर।।

स्वच्छ करें वातावरण, स्वच्छ रहे सब लोग 
दूर यहाँ से जा रहा , कोरोना का रोग ।।

दवा नहीं अब तक बनी, बना नही उपचार
खुद को घर में बंद कर, बस जाए संसार।।

सुख सुविधा की चाह में, काँटे सबने पेड़ 
सड़क बनाने के लिए ,धरती रहे उधेड़।।

चरणों में पितु मात के, सदा नवावों शीश
जग में सबसे है बड़ी ,हर दम ही आशीष।।

पालन जीवन में करो, सदाचार का आप
ईश्वर के ही नाम का ,करते रहना जाप।।

जल का संरक्षण करो, सूख रहे सब ताल 
पेड़ काट कर के यहाँ , बुला लिया निज काल।।

हँसते गाते बाग़ को, रखना तुम आबाद
फूल खिले जिस बाग में, नहीं करो बर्बाद।।

युद्ध क्षेत्र में तो बही, सदा खून की धार 
जीवन है दो-चार दिन, करना सबसे प्यार।।


Friday 7 May 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल " , दोहे ( भगवान परशुराम)



दोहे
 भगवान परशुराम 
 

परशुराम भगवान की, होगी जय जय कार।
करने को वे आ रहे, इस जग का उद्धार।।1।।

जब जब धरती पर बढ़ा, क्रोध लोभ व्यवहार।
 मानव मानव पर करे, जब भी अत्याचार।।2।।

जब-जब अत्याचार ने, बढ़ा दिए हैं पैर।
तब तब जीवों में हुआ, आपस में ही बैर।।3।।

परशुराम भगवान ने, किया जगत उद्धार।
फरसा लेकर आ रहे, विष्णु के अवतार।।4।।

सिखा रहे हैं जीव को, जीवन का वे सार।
जीना है कैसे मनुज, कैसे होना पार।।5।।


Thursday 6 May 2021

राधा तिवारी "राधेगोपाल " , एक नया छंद ,"राधेगोपाल छंद "

 


गुरुदेव संजय कौशिक  विज्ञात जी द्वारा बनाए गए 106 नूतन छंदों में एक छंद "राधेगोपाल छंद" हमे भी आशीर्वाद के रूप में मिला 
आप सदा अपनी छत्र छाया में रखें 
आप दीर्घायु रहें  
राधेगोपाल छंद 

■ राधेगोपाल छंद का शिल्प विधान ■ 

वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए

222 212

222 212 12

मगण रगण

मगण रगण लघु गुरु (लगा)

गुरुदेव के आशीर्वाद के बाद परम आदरणीय कृष्ण मोहन निगम जी ने राधेगोपाल छंद पर अपनी लेखनी से हमे अभिभूत किया आपका आशीर्वाद भी सदा बना रहे 

राधेगोपाल छन्द

कृष्ण मोहन निगम जी द्वारा

राधे राधे जपो,
त्रैतापों की समाप्ति हो।।
कान्हा कान्हा कहो।
कान्हा की प्रीति प्राप्ति हो।।

मीरा का था  वही,
वो ही था संत सूर का ।।
सारा संसार है
कृष्णा,तेरा न और का।।


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राधा तिवारी "राधेगोपाल " , नया छंद "राधेगोपाल छंद"

 

गुरुदेव संजय कौशिक  विज्ञात जी द्वारा बनाए गए 106 नूतन छंदों में एक छंद "राधेगोपाल छंद" हमे भी आशीर्वाद के रूप में मिला 
आप सदा अपनी छत्र छाया में रखें 
आप दीर्घायु रहें  
राधेगोपाल छंद 

■ राधेगोपाल छंद का शिल्प विधान ■ 

वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए

222 212

222 212 12

मगण रगण

मगण रगण लघु गुरु (लगा)

भूखा हो पेट जो,
दो हीरे लाख दान में।
खाता है कौन यूँ,
रत्नों के भोज्य मान में।।

📝संजय कौशिक विज्ञात जी

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राधा तिवारी "राधेगोपाल " , एक नया छंद , " राधेगोपाल छंद '

 

 राधेगोपाल छंद 

गुरुदेव संजय कौशिक  विज्ञात जी द्वारा बनाए गए 106 नूतन छंदों में एक छंद "राधेगोपाल छंद" हमे भी आशीर्वाद के रूप में मिला 
आप सदा अपनी छत्र छाया में रखें 
आप दीर्घायु रहें  

■ राधेगोपाल छंद का शिल्प विधान ■ 

वार्णिक छंद है जिसकी मापनी और गण निम्न प्रकार से रहेंगे यह दो पंक्ति और चार चरण का छंद है जिसमें 6,8 वर्ण पर यति रहेगी। सम चरण के तुकांत समान्त रहेंगे इस छंद में 11,14 मात्राओं का निर्धारण 6, 8 वर्णों में है किसी भी गुरु को लघु लिखने की छूट है इस छंद में लघु का स्थान सुनिश्चित है। लघु जहाँ है वहीं पर स्पष्ट आना चाहिए

222 212

222 212 12

मगण रगण

मगण रगण लघु गुरु (लगा)

222  212
222  212  12

गुरुदेव के आशीर्वाद के बाद परम आदरणीय बाबूलाल शर्मा बौहरा विज्ञ जी ने राधेगोपाल छंद पर अपनी लेखनी से हमे अभिभूत किया आपका आशीर्वाद भी सदा बना रहे 

राधे गोपाल हरि
आपस में आज यूँ ठनी।
वृन्दावन हरि रमें
राधाजी छाँव वट घनी।।

झूले पर रार करि
राधे गोपाल द्वय लड़े
पहले तू झूल अलि
दोनो ही पेड़ चढ़ अड़े
गोपी हँसती रही
बातो में बात अब तनी
राधे.................ठनी

मुरली झट छीन कर
राधे जी कान खींचती
गिरधर तब खूब हिय हँसे
राधा तब वक्ष पीटती
पुरवाई वायु चल
वर्षा तरु पात छनी
राधे............ठनी

ग्वाले भी हँस रहे
ताली दे दे नचे हँसे
राधे गोपाल हरि
उन सबके बीच द्वय फँसे
अपने यह सोच मन
जग में राधा बहुत धनी
राधे....................ठनी
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राधा तिवारी 'राधेगोपाल' " विज्ञात के साक्षात्कार"

परम आदरणीय गुरुदेव संजय कौशिक विज्ञात जी द्वारा वर्ष २०२० में  लिया गया मेरा साक्षात्कार जो" विज्ञात के  साक्षात्कार" में प्रकाशित हुआ 

देखिये उनका आशीर्वाद 


  *विज्ञात: राधा तिवारी 'राधेगोपालजी! वैसे तो आप किसी परिचय के मोहताज नहीं है। लेकिन फिर भी हमारे पाठक आपका परिचय आपके शब्दों में जानना चाहते हैं?*


नमस्कार जी 

राधेगोपाल : विज्ञात जी!  मैं राधा तिवारीराधेगोपाल” जोधपुर राजस्थान से हूँ। वहीं से मेरी प्रारंभिक शिक्षा हुई है।MA इंग्लिश तक मैंने अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा ग्रहण की ।मेरे पिताजी डॉ भोला दत्त पांडेयमाताजी श्रीमती आनंदी पांडेय है।मूल रूप से हम अल्मोड़ा रानीखेत के पांडेय हैं और मेरा विवाह खटीमा में(कालुखान)के श्री गोपाल दत्त तिवारी पुत्र( श्री पूर्णा नन्द तिवारी और श्रीमती आनंदी तिवारी) जी से वर्ष 1992 में हुआ था।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! फिर साहित्य के प्रति आपकी रुचि कैसे जागृत हुई ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी!  देखिए साहित्य तो शायद मेरे रग रग में छिपा हुआ था ।मेरी माता जी एक अच्छी लेखिका थी लेकिन उन्होंने कभी भी अपने शब्दों को किताबों मेंकागजों पर नहीं उतारा बल्कि जब हमें कुछ चाहिए होता था तो वह तुरंत आशु कवियत्री के रूप में हमें कविता लिख कर के दे देती थी। मेरी मम्मी के आशीर्वाद को मैं कभी नहीं भूलुंगी माता पिता का आशीर्वाद मेरे साथ में पग पग पर रहा है और भगवान से प्रार्थना करूंगी कि हमेशा रहेगा।

कक्षा दो से मैंने कहानियाँ लिखनी शुरू की और लगभग तीन-चार वर्षों में लगभग 1000 कहानी लिखने के बाद मेरा मन कविताओं की तरफ मुड़ गया क्योंकि कविताओं में बहुत कम समय में हम कविता को रच लेते हैं और एक बार काव्य में कदम रखने के बाद मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! साहित्य से पृथक अभिरुचि के विषय क्या क्या हैं ?* 

राधेगोपाल : विज्ञात जी! विशेष अभिरुचियों की बात है तो मुझे खेल का बहुत शौक था और बचपन से ही मैं खेल के प्रति भी काफी सजग रहती थी ।मैं विद्यालय में हर खेल में प्रतिभाग करती थी और इसके अलावा सीखने की रुचि मुझ में बहुत ज्यादा हैबुलबुलगाइड और बाद में एनसीसी ले करके मैं अपने हर सपने को पूरा करती रही। मुझे एनसीसी सी” सर्टिफिकेट प्राप्त है इसके अलावा मैंने पैरासेलिंग भी की है और आर्मी विंग में पॉइंट टू टू  और एयर विंग में मैंने थ्री नोट थ्री रायफिल से कितने ही निशाने साधे,और मैं एक विद्यार्थी की तरह आज भी सीखने को हमेशा तत्पर रहती हूँ।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आपकी पसंदीदा विद्या कौन सी हैजिसमें आप ज्यादा लिखना पसंद करते है ?* 

राधेगोपाल : विज्ञात जी! देखिए जिस तरह से एक माँ को अपने सभी बच्चे प्रिय होते हैं उसी प्रकार मुझे लेखन की हर शैली प्रिय है लेकिन फिर भी जब मैं कोई रचना लिखने बैठती हूँ तो अनायास ही अप्रत्यक्ष रूप से वह दोहे का रूप ले लेती है और मैं अनगिनत दोहों को दिन भर में रच लेती हूँ।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! साहित्य की एक वह विशेष बात क्या रही जिसने आप को सबसे अधिक आकर्षक किया?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! देखिए अंग्रेजी साहित्य से पढ़ना और अंग्रेजी साहित्य की ही शिक्षिका होने के बावजूद भी मुझे हिंदी के प्रति इतना लगाव है कि मैं हिंदी साहित्य में पूरी तरह से अपने आप को ढाल चुकी हूँ मैं साहित्य के क्षेत्र में लेखन कार्य कर रही हूँ और इसके लिए मैं श्रीमान संजय कौशिक 'विज्ञातजी को भी धन्यवाद देना चाहुँगी जिन्होंने मुझे व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ा और हिंदी के प्रति मेरी लगन बढ़ती गई और  हिंदी और अहिंदी शब्दों में भेद भी मुझे पता चलने लगे।यहाँ यदि में श्रीमान बाबू लाल बोहरा जी,श्री कृष्ण मोहन निगम जी ,श्रीमती नीतू जी ,श्रीमती अनीता मादिलवार जी का भी जिक्र करूं तो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से और भी मेरे बहुत सारे शुभ चिंतक हैं जिन्होंने मेरी साहित्य प्रेम को बढ़ावा दिया ।हिंदी मेरी मातृभाषा है और इसका प्यार,इसकी शालीनता और मीठे शब्द मुझे अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आप अपनी सशक्त लेखनी के लिए जिम्मेदार किसको मानते हैं अर्थात प्रेरणा स्रोत किसे मानती हैं ?* 

राधेगोपाल : विज्ञात जी! लिखने का शौक तो मुझे बचपन से था। शादी होने के बाद भी मैं लिखती रही लेकिन मुझे उपयुक्त मंच नहीं मिला। फिर वर्ष 2008 में मैं अति दुर्गम क्षेत्र में सरकारी अंग्रेजी अध्यापिका की सेवा देने रा ई का रीठाखाल,चम्पावत चली गई और 2017 तक साहित्य के संसार से दूर हो गई।

 2017 में मेरी पोस्टिंग जब खटीमा हुई तो वहाँ मुझे शैलेश मटियानी पुरस्कार प्राप्त डॉ महेंद्र प्रताप पांडेय" नंद" जी से मुलाकात करने का मौका मिला।

आपने मेरी कला और मेरी जिज्ञासा को देखते हुए मुझे आगे बढ़ायामुझे गाजियाबाद में राष्ट्रीय स्तर पर काव्य पाठ करने का मौका मिला और तब मुझे "युवा प्रतिभा सम्मान" ओर "नव सप्तक सम्मान" से सम्मानित किया गया। मेरी एक साझा पुस्तक नव सप्तक निकली। 

उसके बाद मैंने खटीमा में देखा कि डॉ रूपचंद शास्त्री "मयंक"जो कि एक महान लेखक है और लेखन के क्षेत्र में उनका नाम है वे नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहित करते हैं और उनके साथ मैंने लगभग 20 वर्ष पहले भी कई कवि सम्मेलन किये थे तो मैं उनसे मिली उन्होंने मेरी जिज्ञासा को देखते हुए मेरे रचनाओं को ठीक करना आरंभ किया। मेरे साहित्यिक गुरु बन कर मुझे लेखन के गुर बताए और उनके साथ रहकर के मेरा लेखन के प्रति और दोहों के प्रति मेरा रुझान बढ़ गया और  मैं आगे बढ़ने लगी।।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आपके जीवन में ऐसी कोई घटना विशेष घटना जो प्रेरणादायक रही है और आप उसे गर्व से साझा करना चाहते हैं?* 

राधेगोपाल : विज्ञात जी! देखिये मैंआकाशवाणी जोधपुर में युववाणी” कार्यक्रम में  कंपेयरर थी। उस समय हमारे ऑफिसर श्री पार्थ सारथी थपलियाल जी का भी विशेष सहयोग मिला। इसके अलावा मैं आकाशवाणी जोधपुर में ही अनेक लघु कथा ,लेख और कवि सम्मेलन में प्रतिभाग करती रहती थी। मुझे शैलेश लोढ़ा जी जो उस समय जोधपुर में ही रहते थे के साथ भी काम करने का मौका मिला थाजो आजकल टीवी पर 'वाह वाह क्या बात हैऔर 'तारक मेहता का उल्टा चश्मामें आते हैं। यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है कि मैं उनके साथ काम कर चुकी हूँ।
अब वर्ष 2017 में गाजियाबाद में राष्ट्रीय स्तर पर काव्य पाठ करने करना और "युवा प्रतिभा सम्मान" और "नव सप्तक सम्मान" से सम्मानित होना मेरे लिए गौरव की बात थी।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आपको क्या लगता है एक लेखक की कलम का उद्देश्य आत्मसुखाय चलना सही है या साहित्य और समाज कल्याण करते हुए ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! एक लेखक की कलम का उद्देश्य साहित्य और समाज कल्याण के कार्य करना होना चाहिए। लेखनी में इतनी शक्ति होती है कि वह किसी भी कार्य को सिद्ध कर देती है। लेखक लिखते तो आत्म सुख के लिए ही हैलेकिन जब लेखनी समाज सुधार का बीड़ा भी उठा लेती है तो वह धन्य हो जाती है।

अब देखिए मैंने खटीमा की  टूटी फूटी सड़को गंदगी और कूड़े के ढेर  कोहेलमेट पहनना क्यों जरूरी है इसके अच्छे बुरे परिणाम मैंने सबसे पहले अपनी कविता के माध्यम से खटीमा की जनता तक अखबार के माध्यम से पहुँचाया था। 

मुझे ख़ुशी हुई जब सडकें ठीक हुई। कूड़ा गाडी घर घर से कूड़ा उठाने लगी। खटीमा शहर स्वच्छता की ओर बढ़ा और हेलमेट पर भी पुलिस का ध्यान गया। परिणाम स्वरुप मेरी जनता का जीवन सुरक्षित हुआ। कहीं ना कहीं समाज के कामों को हमारी लेखनी सशक्त करती है। खटीमा से प्रकाशित होने वाले अखबारों विशेष कर 'खटीमा मॉर्निंगऔर 'देव भूमि का मर्म आदि ने मुझे काफी सहयोग किया।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आपकी रचनाओं में साहित्य की लुप्तप्राय समृद्ध शब्दावलियों के साथ-साथ आँचलिक भाषा का समन्वय मिलता हैआप इस पर क्या कहेंगी ?*

राधेगोपाल : इसका श्रेय तो मैं पूरी तरह से परम आदरणीय श्रीमान संजय कौशिक 'विज्ञात'जी को देती हूँजिन्होंने हमें केवल और केवल हिंदी साहित्य के प्रति जागृत किया।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! एक साहित्यकार के रुप में आपके मित्र और परिवार के लोग आपको कितना पंसद करते है ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! जब हमारा नाम किसी क्षेत्र में होता है तो वह अपने परिवार और मित्रों के कारण ही होता है। मेरे मित्र तो बहुत खुश होते हैं। परिवार भी मेरे साथ में है विशेष रूप से मेरे बच्चे स्वाती और युगल का साथ और प्रोत्साहन मुझे हमेशा मिला । मेरे पतिदेव श्री गोपाल दत्त तिवारी जी का सहयोग सदा मुझे  मिला है क्योंकि एक पत्नी के लिए पति का साथ बहुत जरूरी है और उन्होंने कभी भी मेरे लेखन कार्य में रुकावट पैदा ना करके मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया है और उन्हीं के कारण मेरी पुस्तकें 'जीवन का भूगोल' (दोहा

संग्रह) और 'सृजन कुंज'( काव्य संग्रह) 'राधे की अंजुमन' (ग़ज़ल संग्रह)प्रकाशित हुई और आप सबके बीच में हैं।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रति आप क्या दृष्टिकोण रखते हैंआपके विचार से साहित्य को और समृद्ध बनाने के लिए क्या क़दम उठाया जाना चाहिए ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! हिंदी साहित्य के प्रति मेरा दृष्टिकोण बिल्कुल ठीक है। मैं चाहती हूँ कि आने वाली पीढ़ी हिंदी के प्रति और सजग हो। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और राष्ट्रभाषा ही रहे। यह विलुप्त ना हो और हमें अपने प्रत्येक कार्य हिंदी में ही करनी चाहिए। इसके लिए हमें एक विशेष मुहिम चलानी चाहिए जिसमें सिर्फ और सिर्फ हिंदी का उत्थान हो।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! क्या अब तक आपकी कोई साहित्यिक पुस्तक प्रकाशित हुई है यदि छपी है तो उसके विषय में भी कुछ बताएं ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! जी हाँ मेरी तीन एकल पुस्तकें अभी तक छपी है। "जीवन का भूगोल" (दोहा संग्रह), "सृजन कुंज"( काव्य संग्रह),"राधे की अंजुमन" (ग़ज़ल संग्रह),
 इसके अलावा से 7 (साझा संग्रह)हाइकू ,ये दोहे गूँजते से.. ये कुण्डलियाँ बोलती हैं ,गीत,कविताएँ  ,बाल कविताएं भी मेरे निकले हैं और अभी 7, 8 पुस्तकें मेरी प्रकाशित होने की कतार पर है।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! जो नए लेखक या कवि आ रहे हैं उनके लिए आपका दृष्टिकोणउनके लिए क्या सन्देश देना चाहेंगे ?*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! नवोदित रचनाकारों से मेरा विनम्र निवेदन है कि वे लेखन में अपनी भाषा को स्पष्ट रखें ,शुद्ध हिंदी भाषा का प्रयोग करें,  बड़े लेखक और रचनाकारों की रचनाओं को पढ़ें ।

आप जितना पढ़ेंगे उतना ही आप अच्छा लिख पाएंगे। बुरे लेख से बचेंकटाक्ष नहीं करेंदेशद्रोह की बातें ना लिखिएह्रदय पर घात करने वाली शब्दों का प्रयोग ना करें। पढ़िए ज्यादा लिखिए कम ,जितना भी लिखें सोच समझकर सशक्त लिखें।

*विज्ञात: राधेगोपाल जी! हमारे लिए कोई दिशा निर्देश देना चाहें तो स्वागत है*

राधेगोपाल : विज्ञात जी! आपको कुछ बोलना सूरज को दिया दिखने जैसा होगा।  
आप जो भी कार्य कर रहे हैं बहुत अच्छा कर रहे हैं ।हिंदी को बढ़ाने में आपका योगदान अमूल्य है। आपको और आपकी लेखनी कोआपकी भावनाओं को मैं शत-शत नमन करती हूँ आप यूँ ही विश्व पटल पर छाए रहे.....