“अब तुम्हे चलना ही होगा इस वतन के वास्ते”
हार हो या जीत हो, या जान मुश्किल में कभी ।
जान -ए-दिल कुर्बान करना, इस वतन के वास्ते ।।
वक्त हो कैसा भी तुम, डर कर कभी रुकना नहीं ।
कदम तो बढ़ते रहें, अपने वतन के वास्ते ।।
सर्दी गर्मी धूप हो, चाहे हवा प्रतिकूल हो ।
पर्वतों को भी लाँघ जाना, तुम वतन के वास्ते।
दूध माता का पिया है , कर्ज तो उसका चुका।
फर्ज है बलिदान होगा , वतन के वास्ते ।।
शत्रु से डरकर सरहद से, भागकर आना नहीं ।
कह रही राधे कटाना, सिर वतन के वास्ते ।।
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