मेरे यह दो नैन
कलम मेरी सदा रहे
,लिखने को बेचैन।
कोरा कागज ढूंढते, मेरे यह दो नैन।।
अच्छे कर्मों से सदा ,होती है पहचान ।
कपड़ो से होती नहीं,
जग मे ये पहचान।।
हाथ जोड़ने से कभी, कम मत समझो मान।
झुक जाने से तो सदा, होता है सम्मान।।
रात बनाई ईश ने,
करने को आराम ।
हो जाएगी जब सुबह,
तब कर लेना काम।।
देख महल को तू कभी, करना नहीं गुमान।
अगर हो सके भूल जा
,कर के तू एहसान।।
दुख जब आए पास में, साथ ना देगा कोय।
सुख के पल जब आएंगे ,यह जग अपना होय।।
गंगा जी के घाट पर, आते नर और नार।
इनका ही आशीष से
,भवसागर हो पार।।
जादू होता कुछ नहीं, सब हाथों का खेल ।
जादूगर होता वही , करवा दे जो मेल ।।
चटनी और अचार तो
,करते हैं नुकसान।
पर इनको भी भोज का,जानो हिस्सा मान ।।
अगर बचाना नौकरी
,करो समय पर काम।
वरना तो हो जाएगा,
नाम तेरा बदनाम।।
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Wednesday, 13 June 2018
दोहे " मेरे यह दो नैन" (राधातिवारी "राधेगोपाल")
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