कलम बना पतवार
हूक उठी जब हृदय
में, कलम बना पतवार।
तुकबन्दी को जोड़
कर, रचना की तैयार ।।
कहां गए आलोक तुम,
तम है चारों ओर ।
सूर्य देव आ कर
करो, अब तो भाव विभोर।।
प्रेम प्रीत तो हो
गई, बीतो युग की बात।
नया सवेरा लाएगा,
फिर नूतन सौगात।।
शैल शिखर पर छा गई,
हिमचादर चहूं ओर।
चारों तरफ बिखर
रही, अब तो शीतल भोर।।
सृजन करो मन लगा कर, लिखो न ओछी बात।
इससे कोमल भाव को,
लगता है आघात।।
माता के दरबार में
, करो निवेदन आप।
मन चाहे फल के लिए, कर लो पूजा जाप।।
फेरीवाला तो सदा, रखे तराजू संग।
घटतौली से मत करो,
कभी किसी को तंग।।
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Tuesday, 12 June 2018
दोहे "कलम बना पतवार" (राधातिवारी "राधेगोपाल")
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