Saturday, 2 June 2018

दो जून की रोटी ( राधा तिवारी " राधेगोपाल " )



 दो जून की रोटी


 बस चार दिन की जिंदगी होती बहुत छोटी।
 मय्यस्सर हो सभी को यहाँ दो जून की रोटी।।

है किस्मत कौन सी पाई जो करते काम खेतों में ।
भिगोया तन गरीबों ने मिली  दो जून की रोटी।।

 देश की खातिर सैनिक ने घर बार छोड़ा है।
 सुख चैन से खाते नहीं  दो जून की रोटी ।।

कहते हैं वो बड़ा है उसके महल है कई ।
नींद रातों की गवाँई पाने  दो जून की रोटी।।

 मेरिट  में आ रहे  हैं मेरे  देश  के बच्चे ।
पढ़ाई के लिए छोड़ दी  दो जून की रोटी ।।

'राधे' करें मेहनत सभी इस पेट के लिए ।
फिर भी नहीं मिलती कभी  दो जून की रोटी।।









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