गज़ल " इमारत "
दिखाई कब दिए किसी को कभी बुनियाद के पत्थर।
वाहवाही तो मिलती है इमारत को यहां अक्सर।।
धन से कभी ना आँकना इंसान को यहां ।
फकीर बन कर जाते हैं जहान से अक्सर ।।
तन का नहीं है मोल तू बस काम करते जा।
मिट्टी के मोल जाता है इंसान तो अक्सर ।।
महलों को सजाना तू जरा देखभाल कर।
पलभर में चूर होते यहाँ पर ख्वाब है अक्सर।।
अपने पराए साथ में रखना तुम इस कदर ।
अपनों ने राधे थामें है हाथ यह अक्सर।।
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