Sunday, 24 June 2018

उपहार ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")




उपहार

 दान करो आनंद से ,पाओ जग में मान।
 देने में उपहार को ,मत करना अभिमान।।

 खोज रहा क्यों व्यर्थ ही ,पत्थर में भगवान।
कंचन काया ही तेरी ,मूल्यवान इंसान ।।

जग में होता है नहीं ,माया का कुछ अंत
माया में उलझे फिरे, योगी भोगी संत 

कुदरत से करना नहीं, छेड़छाड़ इंसान।
सीधी चलना राह को ,करना काम महान्।।


No comments:

Post a Comment