Thursday, 7 June 2018

गंगा (राधातिवारी "राधेगोपाल")


 गंगा 
 गंगा जी के नीर को, रखो हमेशा साफ l
 गंगा जी हरदम करें, पाप सभी के माफ ll

 सूख रहे हैं आज सब, नदी सरोवर ताल l
 गर्मी से आया हुआ, तन में तेज उबाल ll

 गमले अब तो बन रहे, हैं महलों की शान l
 बिन पेड़ कैसे रहे, धरती पर इंसान ll

 खड़ा कर रहा है महल, धरती पर इंसान l

वृक्ष बिना आ जाएगी, संकट में यह जान ll







No comments:

Post a Comment