गंगा
गंगा जी के नीर को, रखो हमेशा साफ l
गंगा जी हरदम करें, पाप सभी के माफ ll
सूख रहे हैं आज सब, नदी सरोवर ताल l
गर्मी से आया हुआ, तन में तेज उबाल ll
गमले अब तो बन रहे, हैं महलों की शान l
बिन पेड़ कैसे रहे, धरती पर इंसान ll
खड़ा कर रहा है महल, धरती पर इंसान l
वृक्ष बिना आ जाएगी, संकट में यह जान ll
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