Sunday 5 August 2018

ग़ज़ल " वो कैसा शूल है" (राधा तिवारी" राधेगोपाल ")


 वो कैसा शूल है
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 जो किसी को चुभ गया वह फूल कैसा फूल है l
 फूल के संग जो उगे न  तो वो कैसा शूल है ll
 नींद को त्यागा कमाया धन वह सब स्वर्ण है l
 दूसरों की दौलत सदा अपने लिए निर्मूल है ll
 पर नारि को तो देख कर देवी की  करना कामना l
 उसे फूल दे  कर पटाना यह तो तेरी भूल है ll
 सागर में गहरे जाकर ही मिलते सदा  हैं  मोतिया  l
पत्थर और कंकड़ चाहिए तो दिख रहा नदी कूल है ll
  हिंद में रह कर के भी हिंदी नहीं अपनाई कभी l
  संस्कृत उर्दू को संभालो जो हिंदी का ही मूल् है ll
 राधे कहे भी तूफान के जाना नहीं अनुकूल tu l
 उस ओर ही बढ़ते चलो जिस ओर हवा प्रतिकूल हैll
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