मुझको कुछ दिन जी लेने दे
पर वह तो वाचाल बहुत है
मुझसे करे सवाल बहुत हैं
क्यों तुम मुझ को त्याग रही हो?
छोड़के मुझको भाग रही हो
मैं हूँ तेरे मन का दर्पण
करदे कापी मुझको अर्पण
तेरे दिल की मैं तस्वीर
मैं हूँ लेखक की तकदीर
फिर मत कहना अब रहने दे
मुझको मन की भी कहने दे
तेरे साथ से जीती हूँ
शब्दों का अमृत पीती हूँ
रहती पागल सदा सावरी
मैं राधे की बनी बावरी
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