Tuesday, 9 October 2018

दोहे "पीपल-वट की छाँव" (राधा तिवारी 'राधेगोपाल')

आओगे जब पास मेंपूछेंगे तब हाल।
सजनी साजन के बिनाहोती है कंगाल।।

जीवन में लेना नहींकभी किसी की हाय।
पर अच्छे इंसान कीलेना हरदम राय।।

सत्य कभी मिटता नहींमिट जाता है झूठ।
छाता जब भी टूटतारहे हाथ में मूठ।।

पहले जैसे हैं नहींअब भारत के गाँव 
नहीं दिखाई दे रही, पीपल-वट की छाँव।।

अन्न  बिना होता नहींजग में कोई काम।
लेकिन आज किसान कोनहीं मिल रहा दाम।।

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