मेला देखन को चले
मेला लगता है हमें, जैसे हो त्यौहार ।
बाल वृद्ध महिलाएं सब, आते बारंबार।।
मेला देखन को चले, अब राधा गोपाल।
हाथ पकड़कर चल पड़े ,उनका उनके बाल ।।
कोई झूला झूलता, कोई लेता चित्र।
मेले की शोभा लगी ,हमको बड़ी विचित्र ।।
ठेलों पर दिखता यहाँ , पूजा का सामान ।
पूरे होते हैं यहाँ , सब के ही अरमान ।।
मंदिर शिव का है यहाँ , कर लो पूजा जाप।
एक बार चारों तरफ, घुमो प्रियवर आप।।
कहीं कुआं है मौत का, कहीं इंद्र का जाल ।
कोई करतब कर रहा, कोई बेचे माल ।।
सुंदर चित्रों से सजी, मेले में दूकान ।
मिलते हैं फल फूल भी, कहीं बने पकवान ।।
सिलबट्टे दिखते यहाँ , लो मनचाही चीज।
हंसी खुशी के बीच में, भूले गुस्सा खींच।।
जादूगर जादू दिखा ,कमा रहा है नोट।
कुछ बैठे मक्कार हैं, करते लूट खसोट ।।
भोपू डमरु मिल रहे, मिलता सब सामान।
खोके पर बिकते कहीं ,मीठे कड़वे पान।।
हरशुल लेता गेंद को, स्वाति लेती वस्त्र।
कुछ बच्चे खुश हो रहे, देख देख के अस्त्र।।
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Tuesday, 23 October 2018
दोहे " मेला देखन को चले" (राधा तिवारी" राधेगोपाल ")
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