भूखा पेट
एक नन्हा सा दिया तम को मिटाने आ गया।
एक भूखा पेट अब कूड़ा उठाने आ गया ।।
भूख से बेहाल काया दिख रही उसकी यहाँ।
हाल अपनी मुफलिसी( गरीबी) का वो दिखाने आ गया।।
एक भूखा पेट अब कूड़ा उठाने आ गया ।।
दिनदहाड़े लूट लेते हैं यहाँ राहगीर को ।
यहां अब अस्वाब सामान अपना ही लुटाने आ गया।।
एक भूखा पेट अब कूड़ा उठाने आ गया ।।
लाचार है इतना मुसाफिर कर ये कुछ सकता नहीं।
पाव अपना हर डगर पर यह बढ़ाने आ गया।।
एक भूखा पेट अब कूड़ा उठाने आ गया ।।
मिट नहीं सकती है किसी के भाग्य की रेखा कभी ।
बना चुके हैं जो निशां उनको मिटाने आ गया।।
एक भूखा पेट अब कूड़ा उठाने आ गया ।।
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Sunday, 28 October 2018
ग़ज़ल " भूखा पेट " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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