ऊंचे तरुवर चीड़ के
ऊंचे तरुवर चीड़ के, पर्वत की है शान।
ब्रह्मकमल का सुमन तो ,पाता हरदम मान।
टेढा मेढा रास्ता, जाए कैसे गांव।
राह कटीली है सभी, फट जाते हैं पाँव।।
चले अगर सन्मार्ग पर, हरदम ही इंसान।
मुसीबतें उनको कभी, करे नहीं हलकान।।
शब्द बहुत अनमोल है ,बोलो रखकर ध्यान।
अच्छे शब्दों से सदा, मानव की पहचान।।
नहीं टूटने चाहिए, आपस के संबंध।
सच्चाई से कीजिए ,जीवन में अनुबंध ।।
वन उपवन में चल रही, शीतल मंद बयार।
रोज टहलने का करो, मन में आप विचार।।
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Thursday, 4 October 2018
दोहे "ऊंचे तरुवर चीड़ के"( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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