मुश्किल हुआ आज
दो जून खाना
नहीं हमको आती
हैं ग़ज़लें बनाना
करो माफ गर दिल दुखा हो तुम्हारा
नहीं चाहते थे
तुम्हें हम सताना
तुम्हारे तसव्वुर में दिन रात खोये
मगर भीड़ में तुम
कहीं खो न जाना
दामन में यादे
संजोई तुम्हारी
नहीं चाहते
बे-वफा को बताना
तुम्हें देखकर आज भी दिल मचलता
मगर मशनवी हम
बनाते बहाना
वहीं डूबी नौका जहाँ पानी
कम था
नहीं पार हमको है आता लगाना
सुलगती है चिंगारियां जब दिलों में
राधे ये कहती अगन को बुझाना
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