विदा हुए हैं पितृगण
पर्वों पर देते सभी, अपनों को उपहार।
हमें जगाने के लिए, आते हैं त्योहार ।।
श्रद्धा के ही साथ में, उन्हें लगाना भोग ।
अंतरिक्ष में जो गए, अमर हुए वो लोग ।।
रखना सबको पितृ गण, सुखी और संपन्न।
जो पुरखों को पूजते, होते नहीं विपन्न।।
विदा हुए हैं पितृगण, जाते अपने धाम।
एक साल तक स्वर्ग में, करना तुम आराम।।
अपने पुरखो को सभी, लगा रहे हैं भोग।
एक साल के बाद में, आता ये संयोग।।
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Wednesday 10 October 2018
दोहे "विदा हुए हैं पितृगण" ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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