निर्धन के आवास पर ,आया एक नवाब ।
बोला हमको चाहिए, मुर्गा और शराब ।।
अश्रु कण ले नैन में, बोली बूढ़ी मात।
आज हमारे देश में, दुख का हुआ प्रपात।।
तरस रहा है अन्न को, कई दिनों से गांव ।
कब होगी इस गांव में , सुख की शीतल छाँव ।।
हैवानों का भोग क्यों ,मांग रहे हो आप ।
इससे तो लग जाएगा ,हम सब को भी पाप ।।
सुरा कभी अच्छी नहीं ,करती तन बर्बाद ।
इसको पीने से कभी ,हुआ ना घर आबाद।।
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