बारिश
कभी बारिश की छम छम है ,कभी सूरज चमकता है ।
तुम्हें तो देखकर राधे, का मन ऐसे मचलता है।।
घटाएं झूम कर आती, मयूरा नाच करता है ।
चकोरी देखकर रातों में , चंदा भी चमकता है।।
फिजा के बाद ही तो, फूल खिलते हैं बहारों में।
भंवर तितली को जब देखा ,तब उपवन महकता है ।।
रिश्तो को बचा लो आजकल, रिश्ते नहीं दिखते ।
जरा सी बात से ही आज, तो रिश्ता दरकता है।।
सजल सूखे खड़े हैं और उसमें ,है नहीं पत्ते ।
पत्तों में ही तो बैठकर पंछी दुबकता है ।।
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Thursday, 31 May 2018
बारिश Radha Tiwari ( " Radhegopal " )
Wednesday, 30 May 2018
दोस्तों की बात को (Radha Tiwari "Radhegopal ")
दोस्तों के दिल में है हमको उतरना चाहिए
जीना है जीवन का हर पल इस तरह से रात दिन
हम को अपने दिल में सुंदर भाव भरना चाहिए
हंस के जीना है हमें हर एक लम्हा प्यार से
अपने दिल के आईने में खुद सँवरना चाहिए
बात जब भी सत्य की हो झूठ से परहेज कर
हमको तो हरदम सच्चाई को उगलना चाहिए
गिर के उठना उठकर गिरना ही जगत की रीत है
राधा तुझे हर राह पर ही खुद संभलना चाहिए
Tuesday, 29 May 2018
मेरे माथे की बिंदिया (Radha Tiwari "Radhegopal" )
मेरे माथे की बिंदिया
मेरे माथे की
बिंदिया तो, सनम हरदम चमकती है।
तुम्हीं को देखकर
साजन, मेरी नथनी मटकती है ।।
तेरे कदमों की आहट
से, ये दिल बेचैन होता है।
मेरे कानों के झुमकी तो, पपीहा सी चहकती है ।
तेरे जब साथ
होती हूँ, खुशी से झूम जाती हूं ।
मेरी माला मेरे
कंगन, मेरी चूड़ी खनकती है ।
तेरे नैनों में तो
प्रियतम, मुझे अपनी छवि दिखती।
मेरा कजरा मेरा गजरा, मेरी सांसे बहकती है ।
जब तू दूर जाता है, तो दिल बेचैन होता है।
तुझे वापस बुलाने को , मेरी पायल छनकती है ।
मेरे दिलबर मेरे
प्रियतम, मेरी इक बात तो सुनलो।
तुम्हें जब देखती राधा, तो ये सांसें मचलती है।।
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Monday, 28 May 2018
ग़ज़ल "भरोसे पर खरा बैठो" (राधातिवारी "राधेगोपाल")
लगाया है जो दिल उनसे, भरोसे पर खरा बैठो।।
गलत कहना उन्हे मत तुम, कोई भी दोष मत देना।
बनो तुम अपसरा जैसी, दिलों में शान से बैठो।।
लड़ाई मत करो उनसे, सहारा बन के दिखलाओ।
उन्हीं के प्यार में अपने, सभी गम तुम भुला बैठो।।
मगर इकरार करके यूँ, नहीं इनकार कर बैठो।।
सजा देने की तो दिल में, कभी मत ठानना दिलवर।
यह अच्छा है नहीं प्रियवर कि राधे को भुला बैठो।।
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Sunday, 27 May 2018
माता का वरदान ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
माता का वरदान
खुश हो कर के ले लेना जब मिले कभी भी मान
अच्छे कर्म सदा करो रखना यह अरमान
झूठ कपट का साया मेरे संग कभी न आये
दूर करूं हर कठनाई को जो मेरे सम्मुख आये
महल वही टिकता जिलने मजबूत नीव है पाई
तन मन धन से करो हिफाजत जब विपदा हो आई
साथ में मेरे सदा रहेगा माता का वरदान
हँसी-खुशी से लेना राधे तुम अपना सम्मान
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Saturday, 26 May 2018
गड्ढा मुक्त सड़क ( राधा तिवारी " राधेगोपाल " )
गड्ढा मुक्त सड़क
यातायात हमारा देखो ,
अब कितना आसान हो गया।
गड्ढा मुक्त सड़क पर चलना,
मानो अब वरदान हो गया।।
टूटी फूटी सड़क देखकर ,
राहगीर मुश्किल में थे ।
मंदिर जाने वाला राही ,
दुर्घटना से हलकान हो गया ।।
गर्मी जब ज्यादा लगती है,
फुटपाथों पर क्यों सोते हो।
दुर्घटना जब हो जाती तो ,
दोष ईश को क्यों देते हो ।।
सड़कों के हालात देखकर,
चेहरों पर मुस्कान आ गई ।
लंबे लंबे सफर काटना ,
अब कितना आसान हो गया।।
नित्य राह में चलते चलते,
राधा खुश हो जाती अब।
विद्यालय को आना-जाना,
अध्यापक की शान हो गया।।
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Friday, 25 May 2018
राधे करेगी पूजा (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
लाल इस वतन के, बलिदान हो रहे हैं ।
मिट्टी में दफन उनके ,एहसान हो रहे हैं ।।
फूलों का पथ न समझो, कांटों भरी डगर है ।
जो देश के लिए नित ,बलिदान हो रहे हैं ।।
यादों में रह गए हैं, मां बाप के सहारे ।
भारत के लाल कितने ,बलिदान हो रहे हैं ।।
बहनों ने बांधी राखी ,माँ ने तिलक लगाया ।
तन-मन लुटा के अपना ,बलिदान हो रहे हैं।।
तुम लाज को बचाते, इस देश की जवानों ।
टुकडे जिगर के लाखो, बलिदान हो रहे हैं ।।
थाली में दीप लेकर, राधे करेगी पूजा।
मर कर अमर रहेंगे , जो बलिदान हो रहे हैं।।
दिलवर (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )
दिलवर
जरूरी तो नहीं इतना , किसी से दिल लगा बैठो।
लगाया है जो दिल उनसे, भरोसे पर खरा बैठो।।
गलत कहना उन्हें मत तुम, कोई भी दोष मत देना।
बनो तुम अपसरा जैसी, दिलों में शान से बैठो।।
लड़ाई मत करो उनसे, सहारा बन के दिखलाओ।
उन्हीं के प्यार में अपने, सभी गम तुम भुला बैठो।।
कमाया है अगर उसने, तो घर में काम आयेगा।
मगर इकरार करके यूँ, नहीं इनकार कर बैठो।।
तुम्हारी इस कमाई पर ,सदा अधिकार मेरा है ।
सजा देने की तो दिल में, कभी मत ठानना दिलवर।
यह अच्छा है नहीं प्रियवर कि राधे को भुला बैठो।।
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Thursday, 24 May 2018
जिंदगी का हिसाब (राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
जिंदगी का हिसाब
प्यार से भरी मैं किताब लिख रही हूँ ।
खुद से ही प्रश्न करके जवाब लिख रही हूँ।।
काँटों भरी धरा तो सब ओर दिख रही है।
लेकिन धरा को मैं तो गुलाब लिख रही हूँ ।।
हैं चाँद और सितारे रात में चमकते।
सूरत को ही मैं अपनी आफताब लिख रही हूँ।।
जैसा दिख रहा है वैसा नहीं है जीवन।
मैं ज़िन्दगी को सुंदर नकाब लिख रही हूँ।।
लब्ज़ों मैं खुद को ढूंढो मुमकिन नहीं है राधे।
मैं खुद ही जिंदगी का हिसाब लिख रही हूँ।।
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Wednesday, 23 May 2018
चले आए हो ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
चले आए हो
चले आए हो तो बता कर तो आते।
कभी हम सताते कभी तुम सताते।।
दिलों की यह दूरी
तो कम हो गई है ।
जमाने से हम प्यार को है छुपाते।।
सपनों में तुम रोज
आते रहे हो।
कभी मेरी नजरों में
आकर दिखाते।।
इशारों इशारों में
सब कह गए हो।
तुम्हारे तो अल्फाज
है याद आती।।
धड़कन बढ़ मेरी तुम
ने जब देखा।
तुम्हें देख धड़कन
को हम भी बढ़ाते।।
बताओ तो कैसे हम
धड़कन घटाते
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Tuesday, 22 May 2018
विदाई समारोह (राधा तिवारी:" राधेगोपाल "
खटीमा ब्लॉक के सेवानिवृत्त
प्रधानाचार्य, लेक्चरर, टीचर विदाई समारोह के
शुभ अवसर पर
ब्लॉक सभागार खटीमा में
आज 22/05/
2018 को।
इस अवसर पर मैंने अपना एक गीत गाकर सुनाया
रहे साथ जो सदा हमारे, उनकी याद हमें आएगी।
जीवन के हर दोराहे पर, राधा गीत सुनायेगी।।
जीवन भर तुमने शिक्षा के, इस उपवन को सींचा है।
मुरझाने नहीं दिया कभी भी, तुमने यह बगीचा है।।
दूर चले जाओगे जब तुम, खुशियाँ मन बहलाएगी।
जीवन के हर दोराहे पर, राधा गीत सुनायेगी।।
संघर्षों से तुमने इतनी, ऊँचाई को पाया है ।
अध्यापन से अपना तुमने, कीर्तिमान बनाया है।।
जगह हुई जो रिक्त तुम्हारी, कभी नहीं भर पाएगी।
जीवन के हर दोराहे पर, राधा गीत सुनायेगी।।
धन्य धन्य सौभाग्य हमारे, मिले हमें ऐसे साथी।
तम को सदा हटा देते जो, लेकर दिया और बाती।।
नई पौध इस पगडंडी से, कांटे सदा हटाएगी।
जीवन के हर दोराहे पर, राधा गीत सुनायेगी।।
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Monday, 21 May 2018
"खटीमा में कविगोष्ठी" सुनिए मेरी आवाज (राधा तिवारी)
खटीमा-20/05/2018
को दोपहर में वरिष्ठ
साहित्यकार डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक के निवास पर दो सत्रों में काव्य गोष्ठी
का आयोजन किया गया। पहले सत्र में कवियों ने अपनी
स्वरचित कविताओं का पाठ किया। जिसकी अध्यक्षता कवयित्री राधा तिवारी ‘राधेगोपाल’ ने की।
आइये सुनिए
मेरी यह "ग़ज़ल" ....
चल पडो
तब रुक न जाना ,देख कर
यह रास्ते l
“अब तुम्हे चलना ही होगा
इस वतन के वास्ते”
हार हो या जीत हो, या जान मुश्किल में कभी ।
जान -ए-दिल कुर्बान करना, इस वतन के वास्ते ।।
वक्त हो कैसा भी
तुम, डर कर कभी रुकना नहीं ।
कदम तो बढ़ते रहें, अपने वतन के वास्ते ।।
सर्दी गर्मी धूप हो, चाहे हवा प्रतिकूल हो ।
पर्वतों को भी लाँघ जाना, तुम वतन के वास्ते।
दूध माता का पिया
है , कर्ज तो उसका चुका।
फर्ज है बलिदान होगा
, वतन के वास्ते ।।
शत्रु से डरकर सरहद से, भागकर आना नहीं ।
कह रही राधे कटाना, सिर वतन के वास्ते ।।
दूसरा
सत्र में “क से कविता” के रूप
में प्रारम्भ हुआ जिसमें बालककवि के रूप में पधारे आकाश कुमार ने पाठ्यपुस्तक की
एक रचना का पाठ किया। डॉ.सिद्धेश्वर सिंह ने ग़ज़लगो मोमिन की गजल “वो जो
हममें तुममें करार था, तुम्हे
याद हो कि न याद हो” का
वाचन किया, मेजबान डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री मयंक ने कविवर सुमित्रानन्दन पन्त के जन्म दिवस पर उनकी रचना ”मैं
पतझड़ का जीर्ण पात” और हाल
ही में स्मृतिशेष हुए स्व. बालकवि वैरागी की रचना “अपनी
गन्ध नहीं बेचूँगा” को
पढ़ा। श्री श्रीभगवान मिश्र ने सरस्वती वन्दना का सस्वर पाठ किया। आश्रम पद्धति
विद्यालय से पधारे रामरतन यादव ने मंगलेश डबराल की रचना का वाचन किया। इस अवसर
पर जय शंकर चौबे, पूरन बिष्ट तथा कैलाश
पाण्डेय ने भी काव्यपाठ किया। कार्यक्रम में श्री पूरन बिष्ट को उत्तराखण्ड
मुक्त विश्वविद्यालय से मास कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री हासिल करने पर उनकी
भूरि-भूरि सराहना की गयी और उनको बधाई दी गयी।
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Sunday, 20 May 2018
चांद सी मुनिया (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
मेरी जब चांद सी मुनिया, मेरे आंगन ठुमकती है ।
तेरी अठखेलियों से ही ,मेरी गोदी दमकती है ।।
कभी बिंदिया मेरी ले कर ,स्वयं को तू लगाती है ।
रोशन हो तेरी सूरत ,सितारों से चमकती है ।।
कभी बनकर परी नन्ही, तू ख्वाबों को सजाती है।
कभी मेरी छवि बन कर, तू मुझ में ही संवरती है ।।
कभी जब डांटकर तुझको, मैं खुद से दूर करती हूँ।
तू माँ माँ कहकर के ,तब मुझ से लिपटती है।।
तेरी अटखेलियां हरदम ,ही राधे को लुभाती है।
तेरी सूरत सदा स्वाति ,मेरे दिल में धड़कती है।।
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