- दोहे " माली उपवन सींचता "
माली करता है सदा, उपवन का सिंगार।
भँवरे करते हैं सभी, कली देख गुंजार ।।
पौधे के मन की व्यथा, समझ ना पाता कोय।
माली उपवन सींचता, जब-जब पतझड़ होय।।
रंग बिरंगी तितलियां, बगिया में इठलाय।
मधु को पाने के लिए, ही भँवरा मँडराय।।
कल को उनकी ही तरह, लेंगे हम को नोच।।
फूलों से होता सदा, दुख सुख का हर काज।
सभी जगह रहता सुमन, बन करके सरताज ।।
तितली-भँवरे की व्यथा, समझ न पाते लोग।
गुलशन में मधुपान का, होता इनको रोग।।
प्रेमी पागल आ रहा, लेने को अब फूल।
प्रेम प्रदर्शन के लिए, होता यह अनुकूल।।
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Wednesday, 9 May 2018
दोहे "लेंगे हम को नोच" राधा तिवारी
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