नभ से बादल सभी आज छटने लगे।
देखो जंगल से भी पेड़ कटने लगे।।
चौड़ी होती गई अब तो सँकरी सड़क।
दायरे तो दिलों के सिमटने लगे।।
कोकिला पड़ गई देखकर सोच में।
सुर सजाएँ कहाँ पेड़ घटने लगे।।
अब समय है कहाँ बालकों के लिए।
काम पर मां-बाप खटने लगे।।
आज इंसानियत का न मतलब कोई।
दिल तो राधे के भी आज फटने लगे।।
|
No comments:
Post a Comment