Sunday, 13 May 2018

दिव्य अलौकिक रुप ,' राधा तिवारी' " राधेगोपाल "




 दिव्य अलौकिक रुप



 माता बन मुझको मिला, एक नया संसार। 
बच्चों से बढ़ता गया, मेरा प्यार-अपार।। 

जब मैं नन्हीं थी कली, कहते थे सब लोग। 
मात-पिता के काम में, करना तुम सहयोग।। 

कंधे पर बैठा मुझे, पिता कराते सैर । 
बेटा सा समझा मुझे, कभी न समझा गैर ।। 

बाहों का झूला बना, माँ ने दिया दुलार। 
मेरे अधरों की हँसी, उनका था आधार।। 

सखियों का मुझको मिला, हरदम अच्छा साथ। 
झूमीं-नाचीं वो सदा, ले हाथों में हाथ।। 

कहाँ गया वो बचपना, कहाँ गई वो बात। 
हँसी-ठिठोली की नहीं, अब मिलती सौगात।। 

माता का संसार में, दिव्य अलौकिक रुप। 
माता दिखती है हमें, ईश्वर के अनुरूप।।






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