मेरा गुलशन
गर्मी झुलसा रहीं सबका कोमल.कोमल
तन।
जल जायेगा इस गरमी से मेरा गोरा आज
बदन।।
स्वेद विन्दुओं से सींचा था मैंने
जिस पेड़ को।
आज सूखता ही जाता है हरा.भरा मेरा
गुलशन।।
कल तक तो था हरा भरा हँसता.खिलता
रहता था।
आज बगीचे की हर शाखा.पत्ते करें
रुदन।।
घर को कूलर चला.चला कर हमने शीतल कर
डाला।
किन्तु नहीं ठंडा होता है मेरे मन
का आज सदन।।
ढूँढ रहीं मेरी दो अँखियाँ पल.पल
अपने साजन को।
राधे को तो सदा चाहिए अपने
मोहन.श्याम.मदन ।।
|
No comments:
Post a Comment