Monday 14 May 2018

"सृजनहार" दोहे राधा तिवारी" राधेगोपाल "



सृजनहार  

साहस से अपनी चले, नारी सीधी चाल l
 सागर की लहरें सदा, लाती है भूचाल ll

जीवन के हर क्षेत्र , करती रही कमाल l
 लेकिन दुनिया नारि पर, करती सदा सवाल ll

कदम जो नारी के बढे, दुनिया करे बवाल l
कौशल से है काटती, नारी सारे जाल ll

 कंधे से कंधा मिला, नारी करती काम l
 नारी के तो भाग्य में, नहीं लिखा आराम ll

प्यार और सद्भाव से, भरी है हर एक नार l
नारी ही संसार की, होती सृजनहार ll

महिलाओं पर हो रहा, नित ही अत्याचार l
 हो करके गंभीर तुम, करना जरा विचार ll

दुर्गा के जैसे यहां ,  नारी के नौ रूप l
कैसे भी हालात हो, बन जाती अनुरूप ll

 नारी के दिल से कभी, करना मत खिलवाड़ l
 नर को देती है सदा, नारी सदा पछाड़ ll

 नारी को देना सदा, कदम-कदम पर मान l
 भूले से भी नारि का, करना मत अपमान  ll

 नारी का होता सदा,  सुंदर सरल सुभाव  l
नारी का करते रहो, मन से आदर भाव ll



No comments:

Post a Comment