गुलशन
मुझे है आज यह चिंता, के घर कैसे बनाना है।
वतन के वास्ते हमको, यहाँ सब कुछ लुटाना है।
गरीबों की हुई मुश्किल, बढ़ी महँगाई है इतनी ।
गरीबों को नहीं मिलता, सही खाना खजाना है।
उठे किलकारियां घर में, महक जाए चमन अपना।
कली फूलों से अब हमको, यहाँ गुलशन सजाना है।।
हमें यह पूछना है, कामगारों से जमाने के।
फरेबी है जगत कैसे, यहाँ नेकी कमाना है।।
बताते हैं बड़े हमको,
कि ईश्वर हम में रहता है ।
यही चिंता है राधे को, किसे इंसा बताना है।।
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