गुरु उन्हें हैं डांटते
गुरु उन्हें हैं डांटते, जिनसे करते प्यार।
उन्हें न मिलता ज्ञान है, जो होते मक्कार।।
जिसकी होती गरज है, वह बन जाता खास।।
वरना पूरे विश्व में, मेला रहे उदास।।
होंठो पर बंसी लगा, बजा रहे घनश्याम।
ग्वाल बाल के हैं सखा, राधे के है श्याम।।
बाँह थाम कर कृष्ण की, जग हो जाए पार।
जगत नियंता ही सदा, होते खेवन हार।।
जाहिर होता है वही, जैसी जिसकी सोच।
सच को कहने में कभी, मत करना संकोच।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-07-2019) को "कॉन्वेंट का सच" (चर्चा अंक- 3409)) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार गुरुदेव
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