होली
होली तो अब है गई, नहीं गया है रंग।
कान्हा ने ऐसा रंगा, हुई राधिका दंग।।
राधे पर है डालते, कृष्णा कितने रंग।
झूम झूम के खेलते, होली दोनों संग।।
सखियाँ चुन कर ला रही, है बगिया से फूल।
लाल गुलाबी रंग ही ,राधा के अनुकूल।।
कृष्णा लेकर आ रहे, रंग अबीर गुलाल।
राधा के तन को करे, वो हर दम ही लाल।।
छूकर कान्हा कर रहे, राधा को हलकान।
है कान्हा के साथ से, राधे की पहचान।।
सखियों के संग खेलते, कान्हा यमुना तीर।
राधे पर वो डालते, निर्मल गंगा नीर ।।
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Saturday, 20 July 2019
दोहे , "होली " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-07-2019) को "आशियाना चाहिए" (चर्चा अंक- 3404) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'