वो
संशय से वो रहे परे
आखिर है वो बहुत खरे
क्या पहनू क्या पहनाऊं
क्या खाऊं क्या उन्हें खिलाऊं
तू अपने मन का कहरे
आखिर है वो बहुत खरे
निर्धन का भी मान करो
धनवानो की शान बनो
नहीं उड़ाए गुलचर्रे
आखिर है वो बहुत खरे
मनमर्जी नहीं करता बात
किसी को ना देता आघात
दिल पर भी तो है पहरे
आखिर है वो बहुत खरे
पीर पराई देखी जब
नैन से आंसू निकले तब
कहते सब अपने ठहरे
आखिर है वो बहुत खरे
जो पास है उसको बाँट दिया
दुख औरों का छाँट लिया
कभी न करते वो नखरे
आखिर है वो बहुत खरे
देते सब को आजादी
बच्चा हो या हो दादी
राधे के गोपाल हरे
आखिर है वो बहुत खरे
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