Friday 12 July 2019

गजल, " तुम्हीं किताब हो " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )


तुम्हीं किताब हो
मेरे ग़ज़ल व गीत में तुम ही गुलाब हो
 रातों का चांद दिन का तुम्हीं आफताब हो

 पढ़ती हूँ रात दिन यूँ ही पन्ने उलट पलट
 लगता है मेरी जिंदगी कि तुम्हीं किताब हो

 पूछे हैं सब से अब तलक कितने सवाल हैं
 उन सब का मुझको लग रहा तुम्ही जवाब हो

 शब्दों में ढूंढती हूँ तुम्हें मैं तो रात दिन 
रहता है दिल के पास वो तुम्हीं जनाब हो 

नैनो को करके बंद मैं तो सोचती रहूँ
 आते हैं जो सभी को वो तुम्हीं ख्वाब हो

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