Sunday, 28 July 2019

दोहे , वर्षा ऋतु "राधा तिवारी " (राधेगोपाल )


 वर्षा ऋतु 

 
सपनों में जा कर रहेघूमे देश-विदेश।
 बंद नैन से देखतेखुद को बहुत विशेष।।

 धरती पर करते नहींजो कोई भी काम।
 सपनों में ही वो करें ,अपना ऊंचा नाम।।

 स्वप्न सलोने देख केहोना नहीं प्रसन्न।
सपने की फसलें नहींदे पाएंगी अन्न।।

आँख खोल करके करोसपने तुम साकार 
सपनों में बनता महलहोता है बेकार।।

 वर्षा ऋतु में कर रहे,चातक दादुर शोर 
टर्र टर्र वो कर रहेदिवस सांझ  भोर।।

 दादुर के तो साथ में ,आते लंबे सांप 
कलयुग में तो ध्यान सेदुश्मन को लो भांप ।।

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (29-07-2019) को "दिल की महफ़िल" (चर्चा अंक- 3411) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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