बाल कविता
सर्दी का अनुभव होता है
अब आया है जाड़ा
कंबल के अंदर छिपकर के
नीलू पड़े पहाड़ा
बाहर कैसे आऊं कहता
लगती बहुत ही सर्दी
सूरज दादा जब आएंगे
तब पहनूंगी वर्दी
स्वेटर मफलर शाल रजाई
मुझको बहुत लुभाते
पर दिन तो छोटे हो गए हैं
लंबी हो गई रातें
अब तो जाड़े भर रहेगा
पैर पे मेरे मोजा
पर माँ मिला नहीं है जोड़ा
सारा घर ही खोजा
|
No comments:
Post a Comment