छोटी चिड़िया
तुमसे मैं जब से मिली, हुआ प्रफुल्लित अंग।
मेरा तन-मन खिल उठा,पाकर उनका संग।।
बिना आपके हैं नहीं, जीने की कुछ आस।।
दूर नहीं जाना कहीं, रहना हरदम पास।
नीड़ बनाने मैं बयां, होती सबसे दक्ष।।
छोटी चिड़िया ढूंढती,ऊँचे ऊंचे व्रक्ष।
मन भावन सब को लगे, सुंदर सुखद प्रभात।।
सूर्य किरण को देखकर, खिल जाता है गात।
मूंगफली और गुड़ करे,तन मन को मजबूत।
जग में सबसे तुम करो, इंसानो सी बात।।
शीत दूर करते यह, इसके बहुत सबूत।।
धर्म कभी मत पूछना, कभी न पूछो जात।
मां के जैसा है नहीं, जग में कोई और।
माँ की ममता की तरह, कहीं न मिलता ठौर।।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (25-07-2019) को "उम्मीद मत करना" (चर्चा अंक- 3407) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
गुरुजी आपका ससम्मान आभार
Deleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteधन्यवाद जी
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