गंगा जी के घाट पर, लगी हुई है भीड़।
गंगा तट पर आ गए, लोग छोड़कर नीड।।
सुहागिनें सब आ रही, करके साज श्रृंगार।
दीप जलाकर कर रही, गंगा से मनुहार।।
जग के तमको जो हरे, सूरज उसका नाम।
सूरज का होता यहाँ ,जीवन देना काम।।
कर को जोड़े हैं खड़े, सब गंगा के तीर।
सभी आचमन कर रहे, पीकर पावन नीर।।
देवों को है पूजते, आज यहाँ पर लोग ।
करते हैं यह कामना, देव हरे सब रोग।।
गन्ने के रस की बना, खीर खा रहे लोग।
चीनी गुड़ का आज तो, मत करना उपयोग ।।
अच्छा बनने के लिए, हो अच्छा व्यवहार।
कभी किसीसे तुम यहाँ , मत करना तकरार।।
ग्वाला बन करके गए, जग के पालनहार।
जीव जंतुओं से यहाँ , करते थे वो प्यार।।
कूड़े में से बिनते, पशु अपना आहार।
चारा देकर ही उन्हें, कर देना उपकार।।
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Saturday, 27 July 2019
दोहे, " गंगा तट " ( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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बहुत सुंदर।
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