कोरा कागज
बड़े बुजुर्गों के जैसे, पंचांग घरों में रहते हैं।
कौन अभी त्यौहार आ रहा, हमसे कहते रहते हैं।।
बतलाता तारीख हमें, खुद खूंटी पर ही रहता है ।
ग्रह काल नक्षत्र हमें, हर रोज बताता रहता है।।
टंगा हुआ पंचांग कैलेंडर, सबके जीवन का आधार।
इसीलिए तो रविवार से, बच्चे करते रहते प्यार ।।
सोमवार को बच्चे कहते ,सुबह ही जगना होता है।
शनिवार की रात हमेशा, देर से सोना होता है।।
प्रति वर्ष ये बदल बदल कर, संदेशा दे जाता है।
सुख-दुख से ही तो लोगों का, होता सच्चा नाता है।।
और हमें बतलाता है ,यह जीवन है कोरा कागज।
गल जाता है फट जाता है, नश्वर है यह सारा जग।।
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Sunday, 7 July 2019
कविता, "कोरा कागज " (राधा तिवारी " राधेगोपाल " )
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