काफल
काफल अब पकने लगे, आया चैत बैसाख। काफल पाको कह रही, बैठी चिड़िया शाख।।
काफल छोटा है मगर, लेकिन है रसदार।
खाते इसको है सभी, नमक लगा हर बार।।
दाना दाना खा रहे, जो भी पहली बार।
फिर वह मुंह में डालते, दानों का अंबार।।
काफल खाकर पीजिए, पानी एक गिलास।
नमक तेल से हो रहा, स्वाद बहुत ही खास।।
घास काटने जा रही, जंगल में जो नार।
हसिया लेकर हाथ में, लगा रही है धार।।
लाल लाल है दिख रहे, काफल चारों ओर।
बच्चे लेने जा रहे, जग कर इनको भोर।।
केवल दो पल के लिए, काफल में है जान।
सिकुड़ गए गर ये तभी, बासी इनको जान।।
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Friday, 17 May 2019
दोहे, " काफल " ( राधा तिवारी " राधेगोपाल ")
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जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18 -05-2019) को "पिता की छाया" (चर्चा अंक- 3339) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनी