बादल आ जाओ
रोप दिए हैं धान बादल आ जाओ
है दुखी यहाँ इंसान बादल आ जाओ
लू चलती है जेठ माह में ,तपिस सूर्य की झुलसाती
जल बिन मीन नही दरिया में इधर उधर को जा पटी
बढे डरा कि शान बादल आ जाओ
जेठ दोपहरिया तन जला रही हैं , अन्दर सबको भगा रही है
धनिक सो रहे हैं ऐ सी में ,निर्धन को वो जगा रही है
दूर करो व्यवधान बादल आ जाओ
गरम थपेड़ों को संग ले कर ,धुल भरी आंधी आती है
देखर तपिस ये प्यासी धरती , हर इंसा को अकुलाती है
अब कहना सबका मान बादल आ जाओ
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Thursday, 30 May 2019
गीत, "बादल आ जाओ" (राधा तिवारी "राधेगोपाल ")
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प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तूति।
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